Tuesday 26 April 2011

बाल-अपराधी

बाल -अपराधी

रात-दिन पेट भरने का सवाल
माँ की दवाई का कर्ज
पिता का मर्ज
ले आता उसे चिलमिलाती धूप में
मजबूरी में
मजदूरी में

नन्हे -हाथों से टूटते सपने
बिखरती मन की आशाएँ
काम पर ठेकेदार का रौब
घर में भुख-मरी का खौफ
पिता की फटकार से
माँ के दुलार से हर रोज

अपने मासूम कंधों पर
डाल लेता बोझ
भावहीन चहेरे में
जाने कहाँ छिप जाती मासूमियत

परिस्थितियों के वार से
जीवन की हार से
या ज़रूरतों की आँधी में
बन गया बाल-अपराधी
सोचा पकड़ा जाऊँगा तो जेल में
दाल-रोटी तो मुफ्त खाऊँगा

पर हाय रे तकदीर ऐसी
यहाँ भी दगा दे गयी
चोरी कर पकड़ा गया
जंजीरों में जकड़ा गया
पुलिस ने की पिटाई
देने लगा दुहाई

गरीबी का एहसास
बन गया उसके जीवन का अभिशाप

Sunday 24 April 2011

सपने देखा करो






















सपने देखा करो
पर हकीकत मत मानो,
क्योकि सपने तो
केवल सपने ही होते हैं .
जो हमारे अपने नहीं होते
यह हमे सुख-दुःख,
आनंद आदि का स्पर्श भर देते हैं
सपने किसी की याद दिलाते हैं
और याद दिलाने पर
हँसाते हैं, रुलाते हैं 

एक अदभुत स्पर्श छोड़ जाते हैं
पर आँख खुलने पर वे सपने
केवल आखों में रह जाते हैं
जमीन पर उतर नहीं पाते हैं
सपने देखा करो,
पर हकीकत मत मानो !

प्रीत अरोरा 

Tuesday 19 April 2011

आज का इंसान



















हारना मैंने सीखा नहीं है 

जीतना मेरा लक्ष्य
यही सोच और पैसों की लम्बी दौड़
मैं रहूँ सबसे आगे मानव में लगी हौड़
सतरंगी सपनों मे उलझा वो ऐसा
धर्म-कर्म सब कुछ है पैसा
धन-सम्पदा, मान-मर्यादा, ऊँची आन और शान
मृग-तृष्णा ने ऐसा फाँसा, भूला भले-बुरे का ज्ञान
काला-धन और चोरबाजारी
हाय-रे गयी मति-मारी
चार-दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात
टूट गया, इक सुन्दर सपना, बिगड़ी सारी बात
काश, न उड़ता आसमान में
खुद की कर लेता पहचान
पश्चाताप के आँसू पीता
खो गया आदर-सम्मान
यही है आज का इंसान
यही है आज का इंसान
प्रीत अरोरा 

Sunday 17 April 2011

माँ - एक मधुर अहसास

























मैं अकेली कहाँ ?
कोई तो है
जो मुझे पग -पग पर समझाती है ,
कभी प्यार से
कभी फटकार से ,
निराशा के घनघोर अंधकार में ,
ज्योति की एक सुनहरी किरण ,
रास्ता दिखाती
पथ प्रदर्शन करती
मुस्कराती
ओझल हो जाती ,
पास न होकर भी
दिल के कितने करीब होती है
जब -जब भी तुम्हें पुकारा
तो पाया
एक मधुर अहसास ,
सुख -स्पंदन
प्यार का अथाह सागर ,
निश्छल प्यार
जो कहती ... मै दूर कहाँ हूँ तुमसे ?
तुम मेरा प्रतिविम्ब हो ,
उठो ,छोड़ो निराशा
और आगे बढ़ो ...
मेरी प्रेरणा ,मेरी मार्ग -दर्शक
और कोई नहीं
मेरी माँ ही हैं l

-प्रीत अरोड़ा