tag:blogger.com,1999:blog-2733979691500639366.post6359917254416607710..comments2023-05-22T19:04:35.805+05:30Comments on मेरी साधना: प्रवासी साहित्य की कहानियों में यथार्थ और अलगाव के द्वंद्वड़ा प्रीत अरोड़ाhttp://www.blogger.com/profile/02378508400858221695noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2733979691500639366.post-38299468668451738852013-05-01T22:40:15.261+05:302013-05-01T22:40:15.261+05:30आदरणीया डॉ. प्रीतजी “यथार्थ और अलगाव के द्वन्द” म...आदरणीया डॉ. प्रीतजी “यथार्थ और अलगाव के द्वन्द” में आपने जो चित्रित किया है वह हूबहू घटना को चित्रित करता सा एक चलचित्र मानिंद है. यह सही है कि संबंध विच्छेद का निर्णय भले ही किन्ही भी परिस्थितियों में लिया गया हो लेकिन काफी कुछ यह बाह्य आडम्बर या छलावा के भंवरजाल में फंसकर लिया गया अविवेकपूर्ण निर्णय ही साबित होता है. आगे चलकर ऐसा व्यक्ति उम्र ढ़लने के साथ कुण्ठा और अवसाद का शिकार हो जाता है. आपने सही लिखा है कि ऐसे निर्णयों का ख़ामियाजा ताउम्र उन बच्चों को भोगना पड़ता है जिनका रत्ती भर दोष नहीं होता. कुछ भी हो पर नारी या पुरुष के छद्म दैहिक आकर्षण के चलते इंसान अपने लिए समर्पित व्यक्ति के साथ छलावा करता है जो आगे चलकर (95 से 98 फीसदी मामलों में) वक़्त ग़ुजरने के साथ केवल दुःख, संताप और पश्चाताप का बड़ा कारण बनता है. थोड़े से दैहिक सुख और आकर्षण का भ्रम जब टूटता है तो इंसान ख़ुद को सिर्फ छला हुआ महसूस करता है. आपने नामचीन विदेशी लेखकों की रचनाओं के उध्दरण और स्वयं की कलम की स्फूर्ति से इस विषय पर बेबाक टिप्पणी पर आलेख लिखकर प्रवासी हिन्दी प्रेमियों की ऊर्जा की तपन और चिन्ता से देश को परिचित कराया है वहीं भारतीय गरिमा, संस्कृति और मूल्यों पर जो दृष्टिपात किया है वह क़ाबिले तारीफ है. विदेशों में भारतीय, किस तरह से अपनी संस्कृति से बंधे होने पर गर्व करते हैं और किस तरह से वहां विवाह केवल एक कांट्रेक्ट से ज्यादा कुछ नहीं हैं में फर्क महसूस करते हैं, इसे बेहद सुन्दर तरीके से चित्रित और वर्णित किया है. एक ऐसे विषय को उठाया जिस पर इतना ख़ुलकर बात करने में आमतौर पर हमारे देश में अभी लोग सकुचाते हैं. सचमुच में वैचारिक क्रान्ति के इस दौर में ऐसे मुद्दों पर खुलकर बहस होना जरूरी है. यह बहुत ही गर्व की बात है आज की युवा पीढ़ी और उसमें सशक्त युवा हस्ताक्षर समाज की इस अनकही मगर हर पल आस – पास भोगे जाने वाली पीड़ा को जाना, समझा और निदान मूलक सुझाव रखे. जितना भी इस लेख के लिए आपकी प्रशंसा की जाए कम है. बहुत – बहुत साधुवाद.ऋतुपर्ण दवेhttps://www.blogger.com/profile/00948707167831509615noreply@blogger.com