हिन्दी कथा साहित्य में महिला कथाकारों ने अपनी संवेदनशील भावनाओं एवं जागृत प्रतिभा का परिचय देकर हिन्दी कथा-साहित्य को गौरवान्वित किया है l नारी होने के नाते नारी-वर्ग की कठिनाइयों को इन कथा-लेखिकाओं ने सहजता एवं स्वाभाविकता से पकड़ा है l महिला कथाकारों ने नारी हृदय की प्रतिपल धड़कन को यथावत् चित्रित करने का न केवल स्तुत्य प्रयास किया है,अपितु मन की सूक्ष्म परतों की गहराई में उतरकर उन्हें जानने ,समझने व विश्लेषित करने का प्रयास भी किया है l पुरुष कथाकारों की परम्परा से अलग महिला कथाकारों ने विशिष्ट पहचान बनाई है l हिन्दी कथा-साहित्य के अन्तर्गत सर्वप्रथम कहानी लेखिका के रूप में बंग महिला ने 'दुलाईवाली' मौलिक कहानी की रचना करके नारी सम्बन्धी उदार दृष्टिकोण को व्यक्त किया है l इसके उपरान्त महिला कथाकारों की एक दीर्घ परम्परा शुरू हुई,जिसके अन्तर्गत 1950 से पूर्व 'चन्द्रकिरण सौनरेक्सा,रजनी पनिकर आदि ने नारी के आदर्श रूप को प्रस्तुत किया है और साथ ही साथ उसकी शोषित अवस्था को भी चित्रित किया है l तत्पश्चात् 1950 से 1960 के दशक की लेखिकाओं में कृष्णा सोबती,मन्नू भण्डारी,शशि प्रभा शास्त्री आदि ने नारी की शोषित स्थिति और शोषण के प्रति उसके विद्रोहात्मक स्वर को भी रेखांकित किया है क्योंकि उनकी नारी देवी व दानवी नहीं हाड़ -माँस की मानवी भी है l उसमें पुरुष के समान अधिकार एवं स्थान प्राप्त करने की ललक भी है l इसके पश्चात् 1970 से वर्तमान तक में मंजुल भगत,मृदुला गर्ग,मालती जोशी,निरुपमा सेवती,चित्रा मुद्गल,दीप्ति खण्ड़ेलवाल,मृणाल पाण्डेय,सुनीता जैन,सिम्मी हर्षिता,कृष्णा अगिनहोत्री,राजी सेठ,मैत्रेयी पुष्पा,प्रभा खेतान व नासिरा शर्मा आदि ने नारी के उन्नत एवं सशक्त व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया है l इसी तरह समकालीन सन्दर्भ में अलका सरावगी,गीतांजलि श्री,सारा राय,नीलाक्षी सिंह,अल्पना मिश्र,नमिता सिंह,क्षमा शर्मा आदि लेखिकाएँ भी अपना अप्रतिम योगदान दे रही हैं l इनकी नारी समाज में अपनी सशक्त अस्मिता का परिचय दे रही हैं l आधुनिक युग में भारतीय पृष्ठभूमि पर ही नहीं अपितु विदेशी पृष्ठभूमि पर महिला कथा- लेखिकाएँ अपने गूढ़ अध्ययन,मनन एवं चिन्तन द्वारा साहित्यनिधि को और भी सुदृढ़ व सशक्त बना रही हैं जिनमें उषा प्रियवंदा, दिव्या माथुर,उषा राजे सक्सेना ,सुषम बेदी,शैल अग्रवाल,अचला शर्मा,अनिल प्रभा कुमार,सुदर्शन प्रियदर्शिनी,कुसुम सिन्हा,जया वर्मा,पुष्पा भार्गव,सुधा ओम ढ़ीगरा,इला प्रसाद,पुष्पा सक्सेना,प्रतिभा सक्सेना ,रेणु राजवंशी गुप्ता,रेखा मैत्र,शैलजा सक्सेना,अर्चना पैन्यूली,नीना पाल,पूर्णिमा वर्मन आदि के नाम मुख्य रूप से दर्ज हैं l नारी की जो ललक समाज में समानता का दर्जा प्राप्त करने की थी वह यहाँ पर आकर पूरी होती है l इनकी नारियाँ प्रत्येक क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी हैं और समाज के लिए एक चुनौती बनकर आ रही हैं l
समकालीन लेखक ‘बलराम’ ने महिला लेखिकाओं की ओर इंगित करते हुए कहा है ,“ स्त्री के अन्तर्मन की बातें महिला कथाकार जिस गहराई और विश्वसनीयता से लिख सकती हैं ,पुरुष कथाकार नहीं l” उषा देवी मित्रा से प्रारम्भ होकर महिला कथाकारों का कथा-साहित्य एक दीर्घ यात्रा करता हुआ लम्बा पथ पार कर चुका है l नारी के सुखी दाम्पत्य जीवन की इन्द्रधनुषी छटा ने जहाँ उन्हें प्रभावित किया है,वहीँ विभिन्न कारणों से नीरस बनते दाम्पत्य जीवन का चित्रण किया जाना भी इन्होंने अपना कर्तव्य समझा है l महिला कथाकारों ने प्रेम के इन्द्रधनुषी रंग भी दिखाए हैं और बदलते बहुआयामी ढ़ंग भी l आज की नारी प्रेमी की उपेक्षा में आँसू की नदियाँ नहीं बहाती, वह मान-मनोबल की बात भी नहीं करती l प्रत्युत ईंट का जवाब पत्थर से देती है l इन सभी स्थितियों का चित्रण करने में महिला कथाकारों का अनुपमप्रदेय है क्योंकि वे अपने साहित्य द्वारा नारी को जागरूक करना चाहती हैं l नारी को उत्पीड़न व शोषण स्थिति के प्रति सजग करना जिससे उसके जीवन में सुधार हो सके l वर्तमान लेखिकाओं का लेखन समाज के समक्ष एक ज्वलंत उदाहरण है l निश्चित रूप से इन लेखिकाओं का कथा-साहित्य अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों ही स्तरों पर प्रशसनीय है l
लेखिका-------प्रीत अरोड़ा
आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (24-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
ReplyDeleteकल 25/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
उम्दा लेख ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत सुन्दर आलेख है प्रीत।लगातार लिखो।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteएक बात तो माननी ही पड़ेगी....कि महिलाओं की लेखनी नदी की तरह हर उतार चढ़ाव के साथ बहती चलती है ! हर भावना, वेदना, संवेदना... को वह बड़ी ही सहजता, सरलता से, दिल से महसूस करती हुई लिखती है ...व पढ़ने वालों के दिलों को छू लेती है ! वो शायद इसीलिए......क्योंकि एक स्त्री हर काम दिल से जुड़कर करती है ! मन्नू भंडारी जी की कहानी "अकेली" इसका एक अच्छा उदाहरण है...जिसमें अकेलेपन से जूझती हुई एक स्त्री के मनोभावों का बड़ा ही मर्मस्पर्शी चित्रण है !
~सादर !!!
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
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