Thursday, 13 September 2012

हिन्दी भाषा की उन्नति के सोपान

हिन्दी भाषा सामाजिक,नैतिक ,सांस्कृतिक,व्यावहारिक मूल्यों व साहित्यिक  विचारों की धरोहर है,जिसमें से सबसे उच्च  आदर्शों  का स्तम्भ हिन्दी में साहित्य -सृजन माना जाता है I हिन्दी सदियों से ही भारत की राष्ट्रीय अस्मिता तथा जन-जीवन की अभिव्यक्तियों का मूलाधार रही है , जिसके फलस्वरूप आज हिन्दी भाषा का साहित्य अत्यंत समृद्ध व उन्नत हैI हिन्दी भाषा के पास अनेक महान साहित्यकारों का साहित्यकोष सुरक्षित है,जिनमें 'सूरदास' ,'कबीर' ,'तुलसीदास' ,'प्रेमचन्द','जयशंकर प्रसाद' ,'महादेवी वर्मा','सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला' व 'सुमित्रानन्दन पन्त' आदि महान विभूतियों ने हिन्दी -साहित्य की नींव को मजबूत करने के लिए एक भिन्न धरातल तैयार किया I इन सभी प्रतिभावान साहित्यिक मनीषियों की परम्परा को भारतीय व विदेशी पृष्ठभूमि पर आज अनेक साहित्यकारों द्वारा अपने-अपने ढ़ंग से आगे बढ़ाया जा रहा है I जब बात विदेशों में लिखे जा रहे हिन्दी साहित्य की आती है तो उसमें हमारी विश्व प्रसिद्ध वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से ओत-प्रोत संस्कृति ,सभ्यता एवं हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम उद्वेलित होता नजर आता है I आज विदेशी पृष्ठभूमि पर भारतीय हिन्दी साहित्य के अनेकों साहित्यकार अपने गूढ़ अध्ययन,मनन एवं चिन्तन द्वारा साहित्यनिधि को ओर भी सुदृढ़ और सशक्त कर रहें हैं I भारतीय होने के कारण जहाँ वे हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार विदेशों में कर रहें हैं ,वहाँ वे भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से भी विदेशियों को अवगत करवा रहें हैं I ये हमारे लिए गौरव की बात है कि मूलतः भारतीय लेखक विदेशों में केवल रोजी-रोटी के लिए नहीं बसे,अपितु वह तन-मन-धन से हिन्दी भाषा के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं I
                                                पहले तो इस तथ्य पर दृष्टिपात करना होगा कि कौन-कौन से देशों में कौन-कौन से साहित्यकार हिन्दी भाषा की सेवा कर रहे हैं I विदेशी पृष्ठभूमि के अन्तर्गत अमेरिका में उषा प्रियंवदा ,ड़ॅा अनिल प्रभा कुमार,सुदर्शन प्रियदर्शिनी,सुषम बेदी ,उमेश अग्निहोत्री ,रेणु राजवंशी ,प्रतिभा सक्सेना,पुष्पा सक्सेना,कुसुम सिन्हा,नीलम जैन ,इला प्रसाद,देवी नागरानी ,वेद प्रकाश बटुक,सुधा ओम ढ़ीगरा ,सौमित्र सक्सेना,युवा लेखिका रचना श्रीवास्तव व अन्य आदि ,ब्रिटेन में गौतम सचदेव,अचला शर्मा,पद्मेश गुप्त,जकिया जुबैरी,उषा राजे सक्सेना,तेजेन्द्र शर्मा,उषा वर्मा ,प्राण शर्मा,दिव्या माथुर ,शैल अग्रवाल,जया वर्मा व कई और ,कनाडा में सुमन कुमार घई,ड़ॅा शैलजा सक्सेना, समीर लाल समीर,मारीशस से अभिमन्यु अनन्त ,ड़ेनमार्क में चाँद शुक्ला हदियाबादी,अर्चना पैन्यूली व अरब इमारात में पूर्णिमा वर्मन ,कृष्ण बिहारी आदि साहित्यकारों के नाम उल्लेखनीय हैं I
                            ये सभी साहित्यकार अपनी मानसिक अनुभूति,जीवन-दृष्टि,यथार्थ के प्रति बौद्धिक तथा भावनात्मक- चेतना को लेकर न केवल कविताएँ,गजल,कहानी ,लघुकथा,उपन्यास,संस्मरण व आलेख आदि लिखकर भारतीय हिन्दी साहित्य को एक नई पहचान दे रहें हैं,अपितु इसके साथ-साथ अध्यापन,पत्र-पत्रिकाओं के संचालन,विश्व-हिन्दी सम्मेलनों व गोष्ठियों आदि के आयोजन करके विदेशियों को अपनी भाषायी अस्मिता  से भी रू-ब-रूह करवा रहें हैं I सभी साहित्यकार साहित्य लेखन में हिन्दी की दशा व दिशा,जनमानस की मूलभूत समस्याओं ,जीवन संघर्ष की अभिव्यक्ति व सामाजिक मुद्दों आदि पर लेखन कर रहें हैं I ब्रिटेन की लेखिका "उषा राजे सक्सेना " अपनी पुस्तक "ब्रिटेन में हिन्दी" में दिए गए विषयों पर प्रकाश ड़ालती हुए कहती हैं,"ब्रिटेन में हिन्दी ',ब्रिटेन में हिन्दी बोली,भाषा और साहित्य तीनों पर बात करती है.इसके छ:अध्याय हैं १)ब्रिटेन में हिन्दी का उदभव और विकास,२)विकास में लगी संस्थाएँ ,३)भारतीयों के बीच हिन्दी,४)ब्रिटेन के हिन्दी लेखक और प्रवासी हिन्दी साहित्य,५)ब्रिटेन में बसे हिन्दी साहित्यकार और उनकी कृतियाँ,६)प्रवासी बच्चों के हिन्दी का पाठ्यक्रम I" जहाँ उषा राजे सक्सेना हिन्दी की दशा व दिशा के प्रश्न को उठाती हैं ,वहाँ ब्रिटेन में रहकर 'तेजेन्द्र शर्मा 'बाजारवाद से उपजे संघर्ष से जूझते जनमानस की मनोदशा का चित्रण करते हैं I उनका कहना है,"मैं हमेशा अपने आप को हारे हुए इंसान के साथ खड़ा पाता हूँ .ब्रिटेन में बसने के बाद मेरे साहित्य के विषयों में बदलाव आया है.आज मैं विदेशों में बसे भारतीयों की समस्याओं ,उपलब्धियों और संघर्ष की ओर अधिक ध्यान देता हूँ.मैं देखता हूँ कि मेरे चारों ओर जीवन अर्थ से संचालित है,रिश्तों में खोखलापन समा रहा है,बाजारवाद इंसान की सोच को अपने शिंकजे में कसता जा रहा है.पैदा होने से मृत्यु तक हम कैसे बाजार के नियमों तले दबे रहे हैं,ये सब मेरे साहित्य में परिलक्षित होता है I"
                         ऐसा माना जाता है कि अगर किसी भाषा का प्रचार-प्रसार करना हो तो उसका सबसे अच्छा माध्यम करना होता है Iएक शिक्षक अपनी भाषा में संस्कृति व सभ्यता को अपनाने की बात कहकर साहित्य के प्रति अगाध आस्था को प्रकट करता है I विदेशों में साहित्यकार लेखन-कार्य में अनवरत रत हैं,और साथ-साथ कई साहित्यकार वहाँ एक शिक्षक के रूप में भी विद्यालयों व विश्वविद्यालयों में भारतीय ही नहीं विदेशी विधार्थियों को शिक्षा देकर हिन्दी भाषा के सम्मान को और भी अधिक बढ़ा रहें हैं ,जिनमें सुषम बेदी व कृष्ण बिहारी  का नाम मुख्य रूप से जुड़ा है I अमेरिका की सुषम बेदी कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं.अपने अनुभवों को बताते हुए वे कहती हैं,"अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ा रहना मेरे लिए सहज था I मैं भारत में हिन्दी साहित्य की लेक्चरर थी,लिखती भी थी,वही काम और शौक जारी रखे.मुश्किल जरूर था I अक्सर फिजूल कर्म भी लगा लेकिन अंततः यही मेरे लिये सुखद और आत्मसंतोष देने वाला कर्म था,भाषा सिखाने में आंनद आता था .खासकर जब विधार्थी सीखकर भाषा के इस्तेमाल करने लगते हैं....खुशकिस्मत थी कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का पद भी मिला.इस तरह शौक और काम दोनों का मकसद एक ही हो गया I"
                                 इसी तरह संयुक्त अरब इमारात में रहने वाले  'कृष्ण बिहारी  'भी लेखन के साथ-साथ अध्यापन करके हिन्दी भाषा को उन्नति की ओर अग्रसर कर रहें हैं,"बच्चों को विद्यालयों में हिन्दी पढ़ाता हूँ.भारतीय दूतावास और अपने कुछ मित्रों की सहायता से साल में एक-दो कार्यक्रम कराता हूँ.कुछ बच्चों को हिन्दी में अच्छा वक्ता बनने पर मेहनत करता हूँ I "
                                यह सत्य है कि पत्र-पत्रिकाएँ किसी भी भाषा की स्थिति में सुधारात्मक प्रयास करके उसे प्रगति के उच्च शिखर तक पहुँचाने में सक्षम होती है Iइसी सन्दर्भ में विदेशों में साहित्यकार हिन्दी पत्रिकाओं का संचालन सुरूचिपूर्वक कर रहें हैं I इन पत्रिकाओं में ई-पत्रिकाएँ(आनलाइन ) व मुद्रित रूप से भी सम्पादित की जा रही हैं I जिनमें ई-पत्रिकाओं (आनलाइन) में ' पूर्णिमा वर्मन 'की 'अनुभूति ' व 'अभिव्यक्ति ' अपनी  एक अलग पहचान बना चुकी हैं , और अन्य ई-पत्रिकाओं में शैल अग्रवाल की 'लेखनी ' व अमेरिका से 'ई-विश्वा 'भी ऐसी ही पत्रिकाएँ हैं जो तत्कालीन समाज का दर्शन करवाती है Iअमेरिका से ' शैल अग्रवाल ' ई-पत्रिका 'लेखनी ' के सन्दर्भ में बताती हैं,"लोकप्रियता इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है.आज तीन से चार लाख तक की मासिक हिट है.अब शुरुआत की थी  तो माह के अंत तक मात्र दस हजार हिट होती थी.इस पाँचवें वर्ष के प्रतिदिन करीब-करीब दस हजार हिट होती हैं.साहित्य और शैक्षिक संस्थाओं का ध्यान भी इसकी तरफ गया है और कुछ शिक्षण संस्थाओं ने इसे सन्दर्भ- कोष की तरह से भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.साथ ही नए-पुराने एक ही सोच वाले देश-विदेश के कई अच्छे,लेखक और कवियों का पूर्ण रचनात्मक सहयोग मिला है,लेखनी को I " इस तरह अन्य ई-पत्रिकाओं और मुद्रित पत्रिकाओं में अमेरिका से विश्व-विवेक ,सौरभ व भारती ,इंग्लैंड से पुरवाई,कैनेडा से हिन्दी-चेतना,नार्वे में दर्पण ,शन्ति दूत,फीजी में लहर एवं संस्कृति ,मारीशस में मुक्ता,जनवाणी तथा सुमन ,सूरीनाम से सेतुबंध व यू.ए.ई से निकट आदि भी भारतीय संस्कृति व सभ्यता को कायम रखने के लिए हिन्दी-भाषा के प्रति अपना कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभाकर हिन्दी भाषा के भविष्य को उज्ज्वल एवं सुरभित कर रही हैं I
                               विदेश में हिन्दी के विकास  में जहाँ लेखन-कार्य ,अध्यापन व पत्र-पत्रिकाओं की अहम भूमिका है, वही हिन्दी भाषा को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करने के लिए  छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर पर आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन व गोष्ठियों आदि द्वारा आयोजित कार्यक्रमों का भी अप्रतिम योगदान मिल रहा है I वहाँ साहित्यकार निरन्तर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विविध कार्यक्रम करवाने में प्रयत्नशील हैं I संयुक्त अरब इमारात में रह रहीं लेखिका ' पूर्णिमा वर्मन 'बताती हैं," इमारात में हमारी एक छोटी-सी संस्था है ,शुक्रवार चौपाल के नाम से.जहाँ हम हर शुक्रवार की दोपहर मिलकर हिन्दी की कोई कहानी और नाटक या कविताएँ पढ़तें हैं.साल में तीन या चार नाटक भी करते हैं I" इसी तरह  ब्रिटेन से लेखिका 'दिव्या माथुर ' भी जानकारी देते हुए कहती हैं,"ब्रिटेन में  भारतीय संस्कृति और सभ्यता बड़े पैमाने पर चलता रहा है.भाषा और कला के शिक्षण के जरिए बच्चे अपने को भारत से जुड़ा पाते हैं.मंदिरों ,गुरुदवारों ,स्कूलों और कांउसिल की इमारतों में नियमित कक्षाएं ली जाती हैं.भारतीय विद्या भवन,नहेरू केन्द्र ,पाटीदार समाज जैसे पचासियों आयोजन-स्थल हैं,जहाँ भाषा और सँस्कृति को लेकर बड़े पैमानों पर कार्यक्रम होते रहतें हैं I" इन साहित्यकारों का साहित्य वहाँ के समाज का दर्पण दिखाता है I इनके साहित्य में सत्यम्,शिवम् व सुन्दरम् का वास भी है , तथा लोकमंगल की भावना भी .यू.के के वरिष्ठ गजलकार ' प्राण शर्मा 'का मन्तव्य भी यही है I उनके कथानुसार ,"मेरी दृष्टि में साहित्य वही जीवित रहता है जिसमें लोकमंगल की भावना हो,और जिसमें सत्यम् , शिवम् व सुन्दरम् की स्थापना की गई हो  I "
                                  निश्चित रूप से इन सभी साहित्यकारों ने विदेशी पृष्ठभूमि पर नवीन मूल्यों की स्थापना करके हिन्दी भाषा की दिशा व दशा में बदलाव तथा निखार लाकर उसके वैभव को सम्पोषित किया है I ब्रिटेन से ' उषा राजे सक्सेना ' कहती हैं," मैं ब्रिटेन में मई 1967 से हूँ.तुलनात्मक दृष्टि से देखूँ तो पहले की अपेक्षा आज ब्रिटेन में हिन्दी की स्थिति सम्मानजनक है I ब्रिटेन की भारतवंशी आज विभिन्न प्रकार से मातृभाषा के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन कर रहें हैं I कोई लिखता है,कोई स्पर्धा कराता है,कोई सम्मेलन कराता है,कोई पढ़ाता है,कोई किताबें बेचता है I आज हिन्दी बोलने में लोगों को लज्जा नहीं आती.आपको बाजारों,दुकानों,अस्पतालों ,स्कूलों,विश्वविद्यालयों में लोग आपस में हिन्दी भी बोलते मिल जाएंगे.साँस्कृतिक कार्यक्रमों के सँचालन भी अब अक्सर हिन्दी में होने लगे हैं I
                                हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग एवं सफल मंच पर विराजमान करने का श्रेय इन सभी विदेश में रह रहे हिन्दी भाषा के साहित्यकारों को जाता है I परिणामस्वरूप आज हिन्दी का विकास अन्य भारतीय भाषाओं की कीमत पर नहीं बल्कि उनके साथ हो रहा है, और यहाँ तक कि वह अँग्रेज़ी से प्रतिस्पर्धा न करके अपने सर्वांगीण विकास की ओर उन्मुख हो रही है I
लेखिका--- ड़ॉ  प्रीत अरोड़ा

3 comments:

  1. वाह जी ! अच्छी एवम सूचनात्मक जानकारी के लिए धन्यवाद !

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  2. 'हिन्दी भाषा के उन्नति के सोपान' ब्रिटेन से प्रकाशित 'पुरवाई' में आपके आलेख ने कहीं न कहीं पश्चिमी सोच से प्रभावित हमारे जनमानस को सही मायने में झकझोर कर रख दिया है. वाकई हिन्दी के लिए समर्पित हिन्दी भाषियों के बारे में आपने काफी विस्तार से बताया है. कई नई और रोचक तथा कई बेहद प्रभावित कर देने वाली जानकारियों ने अमरीका, इंगलैण्ड से लेकर यूएई तक के हिन्दी मनीषियों का जो ब्यौरा आपने दिया है वह न केवल संग्रहणीय है बल्कि आज के युवाओं जिनसे हिन्दी को काफी आशा है के लिए प्रेरणादायी है. डॉ. प्रीत आपकी लेखनी खुद इस बात का प्रमाण है कि आपने बहुत ही बारीकी से हिन्दी के लिए अध्ययन किया है,शोध किया है. हमें आप पर गर्व है कि इतनी कम उम्र में आपने हिन्दी के लिए जो सम्मानजनक कार्य किए हैं उससे हम हिन्दी प्रेमियों का सिर आपके सामने सम्मान से झुक जाता है. आपको बहुत,बहुत,बहुत साधुवाद.

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  3. हिन्दी के गौरव को स्थापित करने मे आप जैसे कई मनीषी निरंतर सेवालीन है। आप के साथ सभी नवोदित पुरोधाओं को वंदन.............

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