मैं अकेली कहाँ ?
कोई तो है
जो मुझे पग -पग पर समझाती है ,
कभी प्यार से
कभी फटकार से ,
निराशा के घनघोर अंधकार में ,
ज्योति की एक सुनहरी किरण ,
रास्ता दिखाती
पथ प्रदर्शन करती
मुस्कराती
ओझल हो जाती ,
पास न होकर भी
दिल के कितने करीब होती है
जब -जब भी तुम्हें पुकारा
तो पाया
एक मधुर अहसास ,
सुख -स्पंदन
प्यार का अथाह सागर ,
निश्छल प्यार
जो कहती ... मै दूर कहाँ हूँ तुमसे ?
तुम मेरा प्रतिविम्ब हो ,
उठो ,छोड़ो निराशा
और आगे बढ़ो ...
मेरी प्रेरणा ,मेरी मार्ग -दर्शक
और कोई नहीं
मेरी माँ ही हैं l
-प्रीत अरोड़ा
प्रीती ,
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही सुंदर रचना !
दिल को छू गई .....!
माँ से बढ़कर दुनिया में कोई और हो ही नहीं सकता !
माँ को अपनी दिल की बात कहने के लिए शब्दों की जरुरत नहीं होती !
सुंदर कविता के लिए बधाई !
हरदीप
दिल को स्पर्श कर गई आपकी कविता ।
ReplyDeleteप्यार का अथाह सागर ,
ReplyDeleteनिश्छल प्यार
जो कहती ... मै दूर कहाँ हूँ तुमसे ?
तुम मेरा प्रतिविम्ब हो ,
उठो ,छोड़ो निराशा
और आगे बढ़ो ...
मेरी प्रेरणा ,मेरी मार्ग -दर्शक
और कोई नहीं
मेरी माँ ही हैं l
bahut hi achchhi kavita
badhai
rachna