Sunday, 17 April 2011

माँ - एक मधुर अहसास

























मैं अकेली कहाँ ?
कोई तो है
जो मुझे पग -पग पर समझाती है ,
कभी प्यार से
कभी फटकार से ,
निराशा के घनघोर अंधकार में ,
ज्योति की एक सुनहरी किरण ,
रास्ता दिखाती
पथ प्रदर्शन करती
मुस्कराती
ओझल हो जाती ,
पास न होकर भी
दिल के कितने करीब होती है
जब -जब भी तुम्हें पुकारा
तो पाया
एक मधुर अहसास ,
सुख -स्पंदन
प्यार का अथाह सागर ,
निश्छल प्यार
जो कहती ... मै दूर कहाँ हूँ तुमसे ?
तुम मेरा प्रतिविम्ब हो ,
उठो ,छोड़ो निराशा
और आगे बढ़ो ...
मेरी प्रेरणा ,मेरी मार्ग -दर्शक
और कोई नहीं
मेरी माँ ही हैं l

-प्रीत अरोड़ा

3 comments:

  1. प्रीती ,
    वाह ! बहुत ही सुंदर रचना !
    दिल को छू गई .....!
    माँ से बढ़कर दुनिया में कोई और हो ही नहीं सकता !
    माँ को अपनी दिल की बात कहने के लिए शब्दों की जरुरत नहीं होती !
    सुंदर कविता के लिए बधाई !
    हरदीप

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  2. दिल को स्पर्श कर गई आपकी कविता ।

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  3. प्यार का अथाह सागर ,
    निश्छल प्यार
    जो कहती ... मै दूर कहाँ हूँ तुमसे ?
    तुम मेरा प्रतिविम्ब हो ,
    उठो ,छोड़ो निराशा
    और आगे बढ़ो ...
    मेरी प्रेरणा ,मेरी मार्ग -दर्शक
    और कोई नहीं
    मेरी माँ ही हैं l
    bahut hi achchhi kavita
    badhai
    rachna

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