हारना मैंने सीखा नहीं है
जीतना मेरा लक्ष्य
यही सोच और पैसों की लम्बी दौड़
मैं रहूँ सबसे आगे मानव में लगी हौड़
सतरंगी सपनों मे उलझा वो ऐसा
धर्म-कर्म सब कुछ है पैसा
धन-सम्पदा, मान-मर्यादा, ऊँची आन और शान
मृग-तृष्णा ने ऐसा फाँसा, भूला भले-बुरे का ज्ञान
काला-धन और चोरबाजारी
हाय-रे गयी मति-मारी
चार-दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात
टूट गया, इक सुन्दर सपना, बिगड़ी सारी बात
काश, न उड़ता आसमान में
खुद की कर लेता पहचान
पश्चाताप के आँसू पीता
खो गया आदर-सम्मान
यही है आज का इंसान
यही है आज का इंसान
यही सोच और पैसों की लम्बी दौड़
मैं रहूँ सबसे आगे मानव में लगी हौड़
सतरंगी सपनों मे उलझा वो ऐसा
धर्म-कर्म सब कुछ है पैसा
धन-सम्पदा, मान-मर्यादा, ऊँची आन और शान
मृग-तृष्णा ने ऐसा फाँसा, भूला भले-बुरे का ज्ञान
काला-धन और चोरबाजारी
हाय-रे गयी मति-मारी
चार-दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात
टूट गया, इक सुन्दर सपना, बिगड़ी सारी बात
काश, न उड़ता आसमान में
खुद की कर लेता पहचान
पश्चाताप के आँसू पीता
खो गया आदर-सम्मान
यही है आज का इंसान
यही है आज का इंसान
प्रीत अरोरा
खुद की कर लेता पहचान
ReplyDeleteपश्चाताप के आँसू पीता
खो गया आदर-सम्मान
यही है आज का इंसान
यही है आज का इंसान
bahut sender likha hai
likhti raho
जीवन की सच्चाई ब्यान करती है यह कविता
ReplyDeleteखुद की कर लेता पहचान
पश्चाताप के आँसू पीता
खो गया आदर-सम्मान
यही है आज का इंसान
बहुत बड़ी बात कही है इस कविता में ...
काश हम अपने आपको पहचान पाते !
हरदीप