Sunday, 29 April 2012

नारी सिर्फ भोग्य नहीं है ,उसकी अस्मिता की एक प्रतिष्ठा है – रश्मि प्रभा

हिंदी साहित्य की परम्परा में अपनी संवेदनशील कविताओं द्वारा अपनी अलग पहचान बनाने वाली कवियत्री ‘रश्मि प्रभा ‘ महाकवि सुमित्रानंदन पंत की मानस पुत्री सरस्वती प्रसाद की बेटी हैं . इनका नामकरण भी सुमित्रानंदन पंत जी ने ही किया था  . इनका मानना है कि अगर ये शब्दों की धनी न होतीं तो इनका मन ,इनके विचार इनके अन्दर ही दम तोड़ देते .इनका मन जहाँ तक जाता है ,इनके शब्द उसकी अभिव्यक्ति बन जाते हैं .इनका मानना  है कि वटवृक्ष को गवाह मान,दुआओं  के  धागे इसकी गहरी  शाखाओं  से जोड़कर मेरी कलम ने मेरा परिचय लिखना चाह है .पापा की करेजी बेटी ,माँ के रानी बेटी ,काबुलीवाले की मिन्नी बनी पिस्ता बादाम का जादू देख ही रही थी कि दर्द का पहला धुँआ आखो से गुजरा .शमशान की गली ,वृक्षो की कतार  ,बहती नदी .जलती चिता  ….कोमल मन  पर  एक अलग चित्र बनकर उभर गए .शब्दों की जादुई ताकत माँ ने दी .कमल बनने का संस्कार पिता ने ,नाम सुमित्रनानद पन्त ने ,परिपक्वता  समय की तेज़ आंधी ने .जो कुछ भी लिखा -वह आखो  से गुज़रता सच था .सच की ताकत ने न जाने कितनी मौत  से मुझे बचाया और हर कदम पर एक नया एहसास  दिया .एहसास  तो बड़े  गंभीर  थे, पर मन  हमेशा  सिन्ड्रेला  रहा .सिन्ड्रेला  की कविताये मेरे मोहक  सपनो से कभी दूर हुए ,कभी पास आए …..उनको पास लाने के लिये मै मोहक सपने बेचती रही और सपनो की हाट मे घूमते हुए जाने कितने सपनो से दूर होती जाती रही   .”तुम्हारा  क्या गया जो  तुम रोते  हों “-ऐसी पंक्तियों का स्मृति बाहुल्य था .मै हर फ्रेम मे फिट होती गयी. “प्रसाद कुटी “की ताकत लेकर  लिखती गयी ,मिटाती भी गयी  ….अचानक प्रवाह मिला ,अनुपम ,अलोकिक  शब्दों  का स्पर्श मिला ,आखो मे सपने -ही सपने भर गये  …जब नया आयाम मिला .कोई नाम नहीं  ,कोई  रिश्ता नहीं …पर जन्मों का साथ लगा -कोई आत्मा या परमात्मा या……जो भी कह लो….मैंने खुद  नहीं जाना तो तुम्हे  क्या बताऊ  -बस इतना सच है कि मै  उसे जानती हूँ ,वह मेरी प्रेरणा  ,मेरा प्रवाह ,मेरा  सामर्थ्य  है और उसके साथ  मै  हूँ …संजीवनी बने  मेरे तीन स्तंभ -मृगाक  ,खुशबु  ,अपराजिता …..और इससे  अधिक मेरी कोई पहचान  नहीं हुई ,चाहा भी नहीं ….क्योकि कितने  भी तूफ़ान आए ,ऋतुराज बसंत आज भी यही उतरता है .सर्वप्रथम  ‘कादम्बनी  “मे इनकी कविता को स्थान मिला .क्रमशा वुमेन आन  टॉप ,गर्भनाल ,जनसता ,यूके  से प्रकाशित पुरवाई ,राजस्थान  पत्रिका  ,वातायन आदि मे इनकी रचनाओं का प्रकाशन हुआ है .इनका काव्य -संग्रह-शब्दों  का रिश्ता .(३१)कवियों  को लेकर अनमोल  संचयन  का संपादन ,२००७ मे ब्लॉग लेखन का आरंभ .(हिंद युग्म मे ऑनलाइन कवि सम्मलेन ,ऑनलाइन ऑडियो विडियो का विमोचन -कुछ उनके नाम गीतों भरी कहानी का इन्टरनेट पर आरंभ ),ऑनलाइन वटवृक्ष के माध्यम से लेखकों  को  प्रोत्साहन .प्रस्तुत है रश्मि प्रभा जी से ड़ा प्रीत अरोड़ा की विशेष बातचीत—-
   प्रीत अरोड़ा—आपके लेखन की शुरुआत कैसे और कब  हुई और आपका प्रेरणा -स्त्रोत कौन है ?
 रश्मि प्रभा– शब्द , भाव और उन्हें पिरोने की कला  मुझे मेरी माँ श्रीमती सरस्वती प्रसाद से मिली . बचपन से ही एक साहित्यिक वातावरण मेरे घर में था . चाँद हो , सूरज हो, हवा हो , रास्ते हों , या कोई सपना हो – उसे अपने शब्द , अपने भाव देने के लिए माँ कहती और उनका यही प्रयास मेरे लिए प्रेरणा साबित हुई !टूटी फूटी रचनाएँ तो मैं कम उम्र से लिख जाती थी , पर एक भाव निहित रचना मैंने सबसे पहले १९७३ में लिखी और वह ‘कादम्बिनी’ में प्रकाशित हुई . फिर मैं लिखती गई …. लिखने के पीछे सबसे बड़ा कारण था शोर के बीच यूँ कहें भीड़ में मैं खुद को बहुत अकेला पाती थी .मेरी पहली रचना ‘अकेलापन’ ही थी , जिसकी पंक्तियाँ कुछ यूँ थीं -
‘सिंह कभी समूह में नहीं चला
हँस पातों में नहीं उड़े
इन पंक्तियों का स्मृति बाहुल्य था
बहुत से ह्रदय मेरे संग नहीं जुड़े ….’
 प्रीत अरोड़ा—-आप सुमित्रानन्दन पंत जी की नातिन हैं ? स्वाभाविक है कि उनके साथ आपकी बहुत- सी यादें जुड़ी होगी .पाठकों के साथ कुछ यादें साझी कीजिए ?
उत्तर–मैंने प्रारंभ में भी कहा और जहाँ भी इस बात का उल्लेख किया वहाँ यह स्पष्ट कथ्य है कि कवि पन्त ने मेरी माँ को अपनी बेटी माना . कवि पन्त ने विवाह ही नहीं किया था .मेरे बचपन का एक पूरा दिन उनके सामीप्य में उनके इलाहाबाद स्थित घर में बीता . और कहने को वह एह दिन मेरी ज़िन्दगी बन गया . दृश्य जो आँखों से गुजरते हैं , वह समयानुसार अलग- अलग छाप छोड़ते हैं . उनके कमरे की सादगी , उनका सौन्दर्य , उनका स्नेहिल व्यवहार , उनका अपनी कविता गाकर सुनाना , मुझे नाम देकर मेरे भविष्य के गर्भ में आशीष देना , मेरे नाम अपनी पंक्तियाँ देकर यह बताना कि हर उम्र का सम्मान होता है और मेरे प्रश्न पर कि ‘ नाना हैं तो नानी ….’उपस्थित होकर भी उनका खो जाना मुझसे कभी जुदा ही नहीं हुआ . जब कोई कहता है – प्रथम रश्मि का आना रंगिनी तूने कैसे पहचाना …’ मुझे अपनी पहचान मिल जाती है – हर बार ,नए मायने लिए .
प्रीत अरोडा़—आपका साहित्य लेखन किस हद तक सुमित्रानन्दन पंत जी से प्रभावित हुआ है ?
रश्मि प्रभा–मेरा नाम ही प्रकृति से जोड़ दिया उन्होंने , तो – यह तो आप सब ही तय करेंगे कि कितना प्रभावित है मेरा लेखन .
प्रीत अरोड़ा–क्या आपकी माँ सरस्वती प्रभा जी भी लिखती हैं ?
रश्मि प्रभा–हमारी माँ ही हमारा स्रोत हैं …. वे लिखती ही नहीं , बल्कि आए दिन विभिन्न विषयों पर हमसे लिखने को कहकर हमें एक सशक्त आधार देती गयीं …. हमें ही नहीं हमारे बच्चों को भी उन्होंने बहुत कुछ सिखाया . उनका प्रिय खेल ही था – लिखो ‘ . उनकी रचनाओं का संग्रह -’ नदी पुकारे सागर ‘ प्रकाशित है .
प्रीत अरोड़ा–आपको साहित्य की कौन -सी विधा में सबसे अधिक रूचि है और क्यों ?
  रश्मि प्रभा–साहित्य की काव्यात्मक विधा में मेरी अधिक रूचि है, क्योंकि इसमें कम शब्दों में ही अनकही भावनाओं को विस्तार मिल जाता है .
 प्रीत अरोड़ा– महिला लेखिकाओ में से किस महिला लेखिका से आप अत्यधिक प्रभावित हुई हैं ?
रश्मि प्रभा  — महिला लेखिकाओं  में कई एक नाम हैं , जैसे- महादेवी वर्मा , महाश्वेता देवी, मैत्रेयी देवी …..इन विशिष्ट  नामों के बीच मुझे शिवानी की रचनाओं ने बहुत प्रभावित किया . वयोवृद्ध साहित्यकार रामप्रकाश गोयल कहते हैं – ‘ शिवानी जी की उंगलियाँ नारी जीवन की हर नब्ज़ तक पहुँचती हैं .’माँ गुजराती  विदुषी, पिता अंग्रेजी के लेखक , पहाडी पृष्ठभूमि और गुरुदेव की शिक्षा ने शिवानी की भाषा और लेखन को बहुआयामी बनाया .शिवानी के कथाशिल्प में नारी की व्याकुल स्पृहा , स्वर, स्वरुप , प्रकृति , पीड़ा , धर्म और आक्रोश – आवेश उभरकर सामने आए हैं . उनके पात्रों में कोमल भावनाएं थरथराती थीं , प्रेम झिलमिलाता था . उनकी कहानी पढ़ते हुए मैं एक स्वप्निल प्रेम की अद्वैत धारा में बहती जाती रही . ‘कृष्णकली’ ने महीनों मुझे  कृष्णकली के सांचे में डाले रखा .हिंदी का आम पाठक उनकी लेखनी के जादू से बंधा ही उनकी इस कृति ‘कृष्णकली’ से , जो धर्मयुग में धारावाहिक प्रकाशित हुई थी .
सरल को उसी अंदाज में कहना बहुत मुश्किल होता है, पर शिवानी ने सरल को बड़े सरल ढंग से कहा . सबसे बड़ी बात उनके लेखन की यह रही कि उन्होंने कहानियों का विषय हमेशा यथार्थ से लिया और उसे बड़ी ईमानदारी से लिखा . उन्होंने अपनी रचनाओं में कभी ऊपर से कृत्रिम ढंग से बौद्धिकता थोपने की चेष्टा नहीं की .
प्रीत अरोड़ा–समकालीन संदर्भ में स्त्री -विमर्श से आपका क्या तात्पर्य है ?
 रश्मि प्रभा–महादेवी वर्मा ने लिखा है -
‘विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होगा
मैं नीर भरी दुःख की बदली…’   ये पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि स्त्री होने के कारण उनकी कुछ अनसुलझी गुत्थियां थीं , जो सभ्य समाज पर प्रश्न चिन्ह लगाती हैं !ऐसी ही न जाने कितनी कवितायेँ लड़कियों की जिजीविषा को उकेरती आज भी मिल जाएँगी , क्योंकि आज भी पुरानी मान्यताओं वाले संतान के रूप में लड़के की ख्वाहिश रखते हैं ! पर ७०% लोगों को अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लड़के के रूप में कोई उसका उत्तराधिकारी है या नहीं …. आज लड़की अपना हक़ लेना सीख गई है . शादी-विवाह के मामले में भी वह अपनी पसंद- नापसंद को अर्थ देने लगी है . उसने अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत किया है .पत्नी के रूप में वह घर, बच्चे संभालती है , पर पति या सास से खरीखोटी सुनना या मार खाना उसे गवारा नहीं . स्त्री विमर्श को  देह विमर्श का पर्याय मान लिया गया है – उसकी दैहिकता को शील, चरित्र और नैतिकता से जोड़ लिया जाता है …खान-पान , वेशभूषा , रहन-सहन ,कामकाज , पढ़ाई-लिखाई यहाँ तक कि तीज त्योहारों के नियम भी स्त्रियों पर लागू होते रहे हैं .पुरुष की तरक्की उसकी काबिलियत से जोड़ी जाती है और स्त्री की हर उंचाई , हर सफलता को उसके शरीर से जोड़ दिया जाता है !सारे विमर्श के केंद्र में मुख्य चिंता की बात ये है कि आखिर स्त्री का वजूद क्या है ! स्त्रियों ने चिंता की इस लकीर को मिटाने के लिए कई दृढ़ कदम उठाये . मेरी स्वयं की रचनाओं में सशक्त नारी कहती है -
‘बहुत छला  तुमने
या फिर यूँ कहो
स्वभाववश मैं छली गई
पर अब-
ये मुमकिन नहीं
भूले से भी नहीं …’
पर इस राह पर जिस तरह उसने अपनी जगह बनायीं है उसे देख मेरी ही कलम कहती है -
धू धू जलती बहुएं
दहेज़ की बलि वेदी
लांछनों का सिलसिला
रोटी के टुकड़ों का हिसाब …
स्तब्ध कई परिवार !
न न्याय, न समाज, न परिवार
बस एक प्रश्न ….
क्या होगा फिर !
और मौन स्वीकृति – मृत्यु !
….
एक नहीं दो नहीं ….
अनगिनत बेटियों के ख्वाब
दहेज़ की आग में स्वाहा हो गए
भय का अनकहा साम्राज्य
समाज में सिसकियाँ लेता रहा
तब—हाँ तब
लड़कियों ने अपनी ज़मीन को
अपने ज़मीर को अहमियत दी
हर क्षेत्र में अपना सिक्का जमाया
कम हो गया भय बेटी होने का
फख्र हुआ बेटीवालों को
सर उंचा करके सब कहने लगे
‘यह हमारा बेटा है….!’
यानि बेटियों की जीत
उनके ‘बेटा’ कहलाने का ठोस प्रमाण बनी …
…..
इस प्रमाण पत्र को पाने की चाह में
लड़कियों की ‘मासूमियत’ खो गई !
(मासूम लड़की आगे बढ़ ही नहीं सकती )
अधिक सबल बनने की ख्वाहिश लिए
लड़कियाँ घर से दूर हो गईं ……
शिक्षा और शारीरिक संरचना -
दो अलग आयाम हुए
घर से दूर
दो अलग मुकाम हुए !
…………
घर से दो कदम की दूरी पर
जब वहशी आँखें पीछा करती हैं
अश्लील बोल लहू गर्म कर जाते हैं
तो भाई से दूर
पिता से दूर
माँ की ममता से दूर
ये लड़कियाँ….
!!!
लगभग सबने
अपनी घबराहट अपने भय को
उच्चश्रृंखल अंदाज बना लिया
बनाया एक दोस्त …
यहाँ तक कि लिविंग रिलेशनशिप को
कानून बना देने को बाध्य किया !
…..
आलोचना की कुर्सी से उठो
न्यायकर्ता का का चोगा उतारो
और संवेदनशील होकर सोचो …
तभी जानोगे
भय ने इन लड़कियों को
जिस तिस का हाथ थाम लेने को
विवश कर दिया है !
सड़क का अँधेरा
और भयभीत धड्कनें …
दरिंदों से बचने का
सुगम उपाय ढूंढ निकाला है …..
…..
देखा था इन लड़कियों ने
अपनी माँ का हश्र !
सहमी आँखें
आंसुओं के सूखे निशान
और थरथराते कदम …
विवाह ने एक भय भर दिया उनमें
चाहे अनचाहे
वो लड़कों को तौलने लगीं …
समाज !परिवार !न्याय !
विशेष रूप से महिलाएं !…
ज़िम्मेदार हैं मर्यादाओं के हनन का !
अनिच्छा से पत्नी का दायित्व निभाती महिला को
सबने सीख दी
पर खुली हवा नहीं दी !
पत्नी की मौत
पति का ब्याह … कभी गलत हुआ नहीं
पर ज़ुल्म का विरोध
स्त्री की धृष्टता बन गई !
….
सरेराह उठाकर ले जाई लड़की के लिए
प्रत्यक्ष गवाह का प्रश्न उठा
बेरहमी से अन्याय सहती स्त्री के आगे
‘क्यूँ?’ का प्रश्न उठा ….
न्याय के नाम पर अर्जियां पड़ी रहीं
उम्र बीतती गई
प्रश्न उठते रहे
एक ही कहानी- दोहराने की भी हद होती है !
नई पीढ़ी ने
हर तथाकथित मर्यादाओं को ताक पर रख दिया
और भीड़ में गुम हो गई !
कभी देखा है -
अपने अस्तित्व के लिए
अपने टुकड़े के लिए
रात दिन एक करती ये लड़कियाँ
जब रात के सन्नाटे में
अपने कमरे में होती हैं
तो इनकी आँखों में कोई सपना नहीं होता !!!
प्रीत अरोड़ा–नारी अस्मिता व अस्तित्व के संदर्भ में आपकी क्या अवधारणा है ?
रशिम प्रभा–  स्त्रियों के अस्तित्व को सदियों से नकारा गया है , पिछले कुछेक वर्षों से उनकी परिस्थितियों के सन्दर्भ में विस्तृत अध्ययन किये जा रहे हैं , उनके व्यक्तित्व के निर्माण के लिए व्यापक अभियान चलाये जा रहे हैं .नारी सिर्फ भोग्या नहीं , उसकी अस्मिता की एक प्रतिष्ठा है !…. दरअसल नारी को कभी सम्पूर्णता में नहीं देखा गया . अब समय की पुकार है कि सारे मिथ , सारी संहिताएँ और स्मृतियाँ भुलाकर नए विचार, सोच और मानसिकता का निर्माण करें…
प्रीत अरोड़ा–सही अर्थो में नारी की मुक्ति किससे है ?
 रश्मि प्रभा –नारी मुक्ति – इस शब्द का भाव यदि समझा जाये तो इसका तात्पर्य परिवार और समाज से बगावत नहीं है बल्कि उसके साथ चल रही कुरीतियों , विसंगतियों और शोषण से मुक्त करने की मुहीम है . केवल आरक्षण , महिला दिवस , महिला सशक्तिकरण वर्ष मनाने से अथवा नारी मुक्ति आन्दोलन चलाने से महिलाएं मुक्त नहीं हो जाएँगी . इसके अंतर्गत कुछ अहम् प्रश्न उठते हैं -
क्या नग्नता आज़ादी की निशानी है ? क्या बिना शादी किये रहना स्वतंत्रता है ? क्या अर्धरात्रि में अकेले या लड़कों के साथ घूमना ही मुक्ति है ? नारी मुक्ति की पहचान क्या है ?मेरे विचार से किसी भी दासता से मुक्ति ही मुक्ति है ….स्त्री स्वयं इस दासता को स्वीकार करती जाती है और फिर पुरुष हावी होता जाता है ! सही मायनों में नारी को स्वयं अपने विचारों से मुक्त होना है . उसे अपनी उर्जा , अपनी अस्मिता , अपने आर्थिक-सामाजिक हक़ को एक अर्थ देना है और उसके लिए मन से मजबूत होना है !
 प्रीत अरोड़ा– समाज के उत्थान में नारी का क्या योगदान हो सकता है ?
रश्मि प्रभा– समाज के उत्थान में नारी का योगदान हमेशा से अविस्मर्णीय रहा है – सबसे पहले तो नारी का मातृ रूप , जहाँ से पहला पाठ्यक्रम शुरू होता है . उसके बाद हर क्षेत्र — घर-गृहस्थी , रण में तलवार , दफ्तर में कलम , संगीत, राजनीति … हर क्षेत्र में नारी का सशक्त योगदान है. इतिहास पर गौर करें तो पार्वती के बिना तो शिव अधूरे हैं , द्रौपदी , कुंती , गांधारी का चरित्र ही महाभारत को कालजयी बनाता है . नारी कमज़ोर नहीं , अबला नहीं – शक्ति का पर्याय है . देवासुर संग्राम में शुम्भ निशुम्भ , चंडमुंड , रक्तबीज , महिषासुर आदि आसुरी शक्तियों का विनाश दुर्गा ने किया . इसी तरह अरि ऋषि की पत्नी अनुसुइया ने सूखे शुष्क विन्ध्याचल को हरियाली से भर देने के लिए तपस्या की और चित्रकूट से मन्दाकिनी नदी को बहने हेतु विवश किया . आदि से आज तक सामाजिक कहें, देश की कहें – नारी का अदभुत योगदान रहा है .
प्रीत अरोड़ा– आज ऐसा माना जा रहा है कि हिंदी भाषा का अस्तित्व सकंट में है क्या आप इस बात से सहमत हैं ?
रशिम प्रभा– हिंदी हमारे देश की भाषा , हमारा गौरव और वह सहज कड़ी जो दूर दूर तक आसानी से गंगा की निर्मल धारा सी बहती है. पर आज – हिंदी परोक्ष से अपना अस्तित्व ढूंढ रही है . हिंदी बोलना हमारी शान थी , हमारी पहचान थी , हमारी जुबां पर था -
                  ‘हिंदी हैं हम  वतन है हिन्दुस्तां हमारा ‘
बहुत दुःख होता है यह देखकर कि बड़े बड़े शहरों के मॉल में हिंदी की किताबें नहीं मिलतीं , न ही पत्रिकाएं उपलब्ध होती हैं . हिंदी की इस स्थिति की दयनीयता अपरिहार्य है !
प्रीत अरोड़ा– आप नवोदित लेखकों को क्या सन्देश देना चाहती हैं ?
रश्मि प्रभा  –नए कदम हमेशा नई उर्जा, नए सपनों से भरे होते हैं , उनसे बस इतना कहना चाहूँगी -
‘हवा के रुख को मोड़ने की चाह रखो
अपने अन्दर इतना विश्वास रखो
लोग तुम्हे भरमायेंगे
अनगिनत राह दिखायेंगे
चयन तुम्हारे हाथ है
अपने पर भरोसा करो-
आँखें बंद करो,
ईश्वर साथ हैं
तो डर किस बात पे है ?
किसी में इतनी ताकत नहीं कि
तुम्हारा हौसला ले ले
पंखों को खोलो
और आसमान को छू लो……….’
साक्षात्कारकर्ता—-ड़ा प्रीत अरोड़ा

11 comments:

  1. ब्लॉग बहुत ही बढ़िया है , और तुम्हारी साहित्यिक यात्रा हर लक्ष्य को प्राप्त करे

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  2. bahut- bahut sukriya ...........rashmi di ke vicharon ke moti aapne bhali bhanti bikhere hain is blog par........

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  3. रश्मि जी की लेखिनी और व्यक्तित्व... पूर्ण आदर-सम्मान और प्यार ... बधाई दोनों को - पंकज त्रिवेदी

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  4. रश्मि जी से यूँ तो परिचित हैं हम सब मगर आपने उनके विचारों से एक बार और मिलवा दिया………आभार

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  5. पहले तो आपका धन्यवाद ..... लगा ही नहीं कि रश्मि प्रभा जी को पहले से जानती हूँ .... सब नया-नया लगा .... !!शुभकामनायें

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  6. रष्मि प्रभा जी से लिया गया साक्षात्कार पढ़ा, पूरा साक्षात्कार नारी विषयक प्रष्नों पर ही केन्द्रि रहा सिर्फ अंतिम प्रष्न ही राष्ट्रभाषा हिन्दी को समर्पित रहा। महिला रचनाकारों से सिर्फ स्त्रियों से संबन्धित प्रष्न ही क्यों पुछे जाते हैं...मेरे विचार से प्रष्नों का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए था। रष्मि प्रभा जी ने बड़े ही अच्छे शब्दों में अपने विचार रखे। डाॅ. प्रीती अरोरा जी का ब्लाग अच्छा लगा...बधाई।

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  7. शशि पाधा30 April 2012 at 07:28

    प्रीत जी का ब्लॉग देख कर प्रसन्नता हुई | इस माध्यम से हम हर बार नए नए लोगों से मिलेंगे और उनके विचारों से अवगत होंगे | रश्मि प्रभा जी का साक्षात्कार अच्छा लगा | आभार आपका और भविष्य के लिए शुभ कामनाएं |

    शशि पाधा

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  8. हम भी रश्मि प्रभा आंटी को अपना गुरु अपना मार्गदर्शक मानते है.... अगर मेवरि की भी कविता पर आप दो शब्द भी कहती है तो मुझे लगता है की कुछ मैंने लिख दिया..... फिर आप जिस तरह आपके बारे में विस्तार से बताया है... शायद हम कोशिश भी करते तो नही करे पाते...... बहुत-बहुत बधाई .....

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  9. आप सभी ने अपने अमूल्य विचार दिएँ.उसके लिए आभार.

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  10. रश्मिजी लड़कियों के मनोभावों को इतनी बारीकी से आपने अभिव्यक्त किया है इस से अच्छा लिखा ही नहीं जा सालता एक एक शब्द ...सत्य सिर्फ सत्य ..आपको नमन करती हूँ

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  11. सुन्दर। यात्रा जारी रहनी चाहिये थी।

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