Saturday 8 December 2012

एक और खुशखबरी मेरी कविता किताबों की दुनिया को बाल विकास प्रकाशन की ओर से स्कूल के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत पहली से पाँचवीं कक्षा में लगाया गया है.प्रस्तुत है किताब का कवर पेज ................


खुशखबरी खुशखबरी खुशखबरी यह है वटवृक्ष पत्रिका के एक और एतिहासिक अंक का मुखपृष्ठ , यह अंक अभी प्रेस में है । नए साल में आप इसका दीदार कर पाएंगे । यह अंक हिन्दी समाज के 100 हस्ताक्षरों के साक्षात्कार पर केन्द्रित है । इस अंक का संयोजन संपादन करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । पत्रिका के सम्पादक रविन्द्र प्रभात जी हैं.मुखपृष्ठ बनाया है अपराजिता कल्याणी ने


Sunday 2 December 2012

बेटियाँ पराया धन

बेटिया तो होती ही हैं धन पराया
राजा हों या रंक कोई न इसे रख पाया
बेटी -बेटे मे ये भेदभाव क्यों होता है?
बेटा अंश बढाता है, बेटी को पराया कहा जाता है
जिसको वो जानती तक नहीं,
उसी के साथ नाता जोड़ दिया जाता है
लालन -पालन और एक -सी शिक्षा -दीक्षा
फिर बेटी को ही क्यों देनी पड़ती है अग्नि -परीक्षा
जो एक पल भी नहीं होती आँखों से दूर
अचानक वो चली जाती है होकर मजबूर
कितना कठिन होता है
यूँ जिगर के टुकड़े को अपने से दूर कर देना
लाड-प्यार से पाली अपनी लाडली को
परायों के सपुर्द कर देना
माँ-बाप, भाई-बहन का प्यार छोड़कर
नए रिश्ते जोड़ लेती है पुराने तोड़कर
आँखों में
नए सपने ले चली जाती है नया संसार बसाने
बचपन की यादे भुलाकर
ससुराल के रिश्ते निभाने
बस फिर उसका ससुराल अपना हो जाता है
और मायका पराया
पति-बच्चों मे रमकर भूल जाती है
वो अपना पराया
हाय ये कैसी रीत, कोई भी इसे न जाना
किस बेदर्द ने बनाया ये दस्तूर पुराना

                     डॉ.प्रीत अरोड़ा



Friday 23 November 2012

" हिन्दी कथा -साहित्य में नारी-जीवन को चित्रित करती महिला रचनाकार ”

   
हिन्दी कथा साहित्य में महिला कथाकारों ने अपनी संवेदनशील भावनाओं एवं जागृत प्रतिभा का परिचय देकर हिन्दी कथा-साहित्य को गौरवान्वित किया है l नारी होने  के नाते नारी-वर्ग की कठिनाइयों को इन कथा-लेखिकाओं ने सहजता एवं स्वाभाविकता से पकड़ा है l महिला कथाकारों ने नारी हृदय की प्रतिपल धड़कन को यथावत् चित्रित करने का न केवल स्तुत्य प्रयास किया है,अपितु मन की सूक्ष्म परतों की गहराई में उतरकर उन्हें जानने ,समझने व विश्लेषित करने का प्रयास भी किया है l पुरुष कथाकारों की परम्परा से अलग महिला कथाकारों ने विशिष्ट पहचान बनाई है l हिन्दी कथा-साहित्य के अन्तर्गत सर्वप्रथम कहानी लेखिका के रूप में बंग महिला ने 'दुलाईवाली' मौलिक कहानी की रचना करके नारी सम्बन्धी उदार दृष्टिकोण को व्यक्त किया है l इसके उपरान्त महिला कथाकारों की एक दीर्घ परम्परा शुरू हुई,जिसके अन्तर्गत 1950 से पूर्व 'चन्द्रकिरण सौनरेक्सा,रजनी पनिकर आदि ने नारी के आदर्श रूप को प्रस्तुत किया है और साथ ही साथ उसकी शोषित अवस्था को भी चित्रित किया है l तत्पश्चात् 1950 से 1960 के दशक की लेखिकाओं में कृष्णा सोबती,मन्नू भण्डारी,शशि प्रभा शास्त्री आदि ने नारी की शोषित स्थिति और शोषण के प्रति उसके विद्रोहात्मक स्वर को भी रेखांकित किया है क्योंकि उनकी नारी देवी व दानवी नहीं हाड़ -माँस की मानवी भी है l उसमें पुरुष के समान अधिकार एवं स्थान प्राप्त करने की ललक भी है l इसके पश्चात् 1970 से वर्तमान तक में मंजुल भगत,मृदुला गर्ग,मालती जोशी,निरुपमा सेवती,चित्रा मुद्गल,दीप्ति खण्ड़ेलवाल,मृणाल पाण्डेय,सुनीता जैन,सिम्मी हर्षिता,कृष्णा अगिनहोत्री,राजी सेठ,मैत्रेयी पुष्पा,प्रभा खेतान व नासिरा शर्मा आदि ने नारी के उन्नत एवं सशक्त व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया है l इसी तरह समकालीन सन्दर्भ में अलका सरावगी,गीतांजलि श्री,सारा राय,नीलाक्षी सिंह,अल्पना मिश्र,नमिता सिंह,क्षमा  शर्मा आदि लेखिकाएँ भी अपना अप्रतिम योगदान दे रही हैं l इनकी नारी समाज में अपनी सशक्त अस्मिता का परिचय दे रही हैं l आधुनिक युग में भारतीय पृष्ठभूमि पर ही नहीं अपितु विदेशी पृष्ठभूमि पर महिला कथा- लेखिकाएँ अपने गूढ़ अध्ययन,मनन एवं चिन्तन द्वारा साहित्यनिधि को और भी सुदृढ़ व सशक्त बना रही हैं जिनमें उषा प्रियवंदा, दिव्या माथुर,उषा राजे सक्सेना ,सुषम बेदी,शैल अग्रवाल,अचला शर्मा,अनिल प्रभा कुमार,सुदर्शन प्रियदर्शिनी,कुसुम सिन्हा,जया वर्मा,पुष्पा भार्गव,सुधा ओम ढ़ीगरा,इला प्रसाद,पुष्पा सक्सेना,प्रतिभा सक्सेना ,रेणु राजवंशी गुप्ता,रेखा मैत्र,शैलजा सक्सेना,अर्चना पैन्यूली,नीना पाल,पूर्णिमा वर्मन आदि के नाम मुख्य रूप से दर्ज हैं l नारी की जो ललक समाज में समानता का दर्जा प्राप्त करने की थी वह यहाँ पर आकर पूरी होती है l इनकी नारियाँ प्रत्येक क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी हैं और समाज के लिए एक चुनौती बनकर आ रही हैं l
                     समकालीन लेखक  ‘बलराम’ ने महिला लेखिकाओं की ओर इंगित करते हुए कहा है ,“ स्त्री के अन्तर्मन की बातें महिला कथाकार जिस गहराई और विश्वसनीयता से लिख सकती हैं ,पुरुष कथाकार नहीं l” उषा देवी मित्रा से प्रारम्भ होकर महिला कथाकारों का कथा-साहित्य एक दीर्घ यात्रा करता हुआ लम्बा पथ पार कर चुका है l नारी के सुखी दाम्पत्य जीवन की इन्द्रधनुषी छटा ने जहाँ उन्हें प्रभावित किया है,वहीँ विभिन्न कारणों से नीरस बनते दाम्पत्य जीवन का चित्रण किया जाना भी इन्होंने अपना कर्तव्य समझा है l महिला कथाकारों ने प्रेम के इन्द्रधनुषी रंग भी दिखाए हैं और बदलते बहुआयामी ढ़ंग भी l आज की नारी प्रेमी की उपेक्षा में आँसू की नदियाँ नहीं बहाती, वह मान-मनोबल की बात भी नहीं करती l प्रत्युत ईंट का जवाब पत्थर से देती है l इन सभी स्थितियों का चित्रण करने में महिला कथाकारों का अनुपमप्रदेय है क्योंकि वे अपने साहित्य द्वारा नारी को जागरूक करना चाहती हैं l नारी को उत्पीड़न व शोषण स्थिति के प्रति सजग करना जिससे उसके जीवन में सुधार हो सके l वर्तमान लेखिकाओं का लेखन समाज के समक्ष एक ज्वलंत उदाहरण है  l निश्चित रूप से इन लेखिकाओं का कथा-साहित्य अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों ही स्तरों पर प्रशसनीय है l 
लेखिका-------प्रीत अरोड़ा    

Thursday 25 October 2012

खुशखबरी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

खुशखबरी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आज खटीमा निवासी डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"जी ने मेरे चित्र पर यह बाल कविता लिखी है। उनकी अनुमति से इसे आप सब मित्रों के साथ शेयर कर रही हूँ।
"खेल-खेल में रेल चलायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खेल-खेल
में रेल चलायें

(चित्र साभार-डॉ.प्रीत अरोरा)
आओँ बच्चों खेल सिखायें।
खेल-खेल में रेल चलायें।।

इंजन राम बना है आगे,
उसके पीछे डिब्बे भागे,
दीदी हमको खेल खिलायें।
खेल-खेल में रेल चलायें।।

साथ-साथ में हम गायेंगे,
सिगनल पर हम रुक जायेंगे,
अनुशासन का पाठ पढ़ायें।
खेल-खेल में रेल चलायें।।

बड़े-बड़े हम काम करेंगे,
हम स्वदेश का नाम करेंगे,
पढ़-लिख कर ज्ञानी कहलायें।
खेल-खेल में रेल चलायें।।

हम धरती माँ के सपूत हैं,
मानवता के अग्रदूत हैं,
विश्वगुरू फिर से बन जायें।
खेल-खेल में रेल चलायें।।
--
http://nicenice-nice.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

Monday 24 September 2012

वाह री ! मैट्रो

कहते हैं हर चीज का नफा-नुकसान होता है मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हालही में दिल्ली जाना हुआ मैंने अक्सर मैट्रो की चर्चा सुनी थी .दिल्ली जाकर साक्षात दर्शन भी हो गए और अब सफर करने के लिए मन में उत्सुकता थी पर ये क्या लोगों का
हजूम देखकर मेरी हिम्मत जवाब देने लगी.कहते है न दूर के ढ़ोल सुहावने.मैट्रो में कदम रखते ही मेरा मन घबराने लगा कि सफर पूरा होगा भी या नहीं.भगवान का नाम लेकर सफर शुरू किया.मेरे पापा भी मेरे साथ थे.इतने में पापा ने एक लड़के को पकड़कर उसे ड़ाटना शुरू कर दिया .पता लगा कि वो पापा की जेब साफ करने लगा था .हे भगवान अब ये भी देखना था .ड़र के मारे मेरे पसीने छूट रहे थे कि अब पापा से मेरी क्लास पक्की लगी क्योंकि पापा ने भीड़ देखकर मना किया था कि इसमें सफर करना रहने दो पर मै हूँ न जिद्दी लड़की.आखिर मैट्रो का तजुर्बा जो लेना था.अभी ये विपदा हटी तो दूसरी सिर पर खड़ी थी हम गलती से अपने स्टेशन पर न उतर कर किसी दूसरे स्टेशन पर उतर गये.प्यारे पापा से इतनी प्यारी ड़ाँट पड़ी कि खुशी के मारे मेरी आँखों में आँसू आ गए.और मैट्रो की सुँदर शक्ल मेरी आँखों के सामने घूम रही थी.और मैंने कसम खाई कि ये मेरा मैट्रो में आखिरी सफर था
डॉ.प्रीत अरोड़ा.................................

Friday 21 September 2012

कार्यक्रम में उपस्थित हमारी मित्र मण्ड़ली में बाएँ से जेन्नी शबनम,सरोज जी ,नमिता राकेश,अलका सिन्हा जी,अंजू शर्मा,किशोर श्रीवास्तव जी की धर्मपत्नी,नवीन शुक्ला जी,किशोर श्रीवास्तव जी,धीरज चौहान जी,और नीचे बैठे साड़ी मैं पूनम माटिया जी और साथ में मैं


कार्यक्रम में उपस्थित हमारी मित्र मण्ड़ली में बाएँ से जेन्नी शबनम,सरोज जी ,नमिता राकेश,अलका सिन्हा जी,अंजू शर्मा,किशोर श्रीवास्तव जी की धर्मपत्नी,नवीन शुक्ला जी,किशोर श्रीवास्तव जी,धीरज चौहान जी,और नीचे बैठे साड़ी मैं पूनम माटिया जी और साथ में मैं ...................

नई दिल्ली, 19 सितम्बर,2012,दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में राजीव गांधी अवार्ड स्मारिका विमोचन समारोह में मंच संचालन करती मैं


Thursday 13 September 2012

हिन्दी भाषा की उन्नति के सोपान

हिन्दी भाषा सामाजिक,नैतिक ,सांस्कृतिक,व्यावहारिक मूल्यों व साहित्यिक  विचारों की धरोहर है,जिसमें से सबसे उच्च  आदर्शों  का स्तम्भ हिन्दी में साहित्य -सृजन माना जाता है I हिन्दी सदियों से ही भारत की राष्ट्रीय अस्मिता तथा जन-जीवन की अभिव्यक्तियों का मूलाधार रही है , जिसके फलस्वरूप आज हिन्दी भाषा का साहित्य अत्यंत समृद्ध व उन्नत हैI हिन्दी भाषा के पास अनेक महान साहित्यकारों का साहित्यकोष सुरक्षित है,जिनमें 'सूरदास' ,'कबीर' ,'तुलसीदास' ,'प्रेमचन्द','जयशंकर प्रसाद' ,'महादेवी वर्मा','सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला' व 'सुमित्रानन्दन पन्त' आदि महान विभूतियों ने हिन्दी -साहित्य की नींव को मजबूत करने के लिए एक भिन्न धरातल तैयार किया I इन सभी प्रतिभावान साहित्यिक मनीषियों की परम्परा को भारतीय व विदेशी पृष्ठभूमि पर आज अनेक साहित्यकारों द्वारा अपने-अपने ढ़ंग से आगे बढ़ाया जा रहा है I जब बात विदेशों में लिखे जा रहे हिन्दी साहित्य की आती है तो उसमें हमारी विश्व प्रसिद्ध वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से ओत-प्रोत संस्कृति ,सभ्यता एवं हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम उद्वेलित होता नजर आता है I आज विदेशी पृष्ठभूमि पर भारतीय हिन्दी साहित्य के अनेकों साहित्यकार अपने गूढ़ अध्ययन,मनन एवं चिन्तन द्वारा साहित्यनिधि को ओर भी सुदृढ़ और सशक्त कर रहें हैं I भारतीय होने के कारण जहाँ वे हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार विदेशों में कर रहें हैं ,वहाँ वे भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से भी विदेशियों को अवगत करवा रहें हैं I ये हमारे लिए गौरव की बात है कि मूलतः भारतीय लेखक विदेशों में केवल रोजी-रोटी के लिए नहीं बसे,अपितु वह तन-मन-धन से हिन्दी भाषा के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं I
                                                पहले तो इस तथ्य पर दृष्टिपात करना होगा कि कौन-कौन से देशों में कौन-कौन से साहित्यकार हिन्दी भाषा की सेवा कर रहे हैं I विदेशी पृष्ठभूमि के अन्तर्गत अमेरिका में उषा प्रियंवदा ,ड़ॅा अनिल प्रभा कुमार,सुदर्शन प्रियदर्शिनी,सुषम बेदी ,उमेश अग्निहोत्री ,रेणु राजवंशी ,प्रतिभा सक्सेना,पुष्पा सक्सेना,कुसुम सिन्हा,नीलम जैन ,इला प्रसाद,देवी नागरानी ,वेद प्रकाश बटुक,सुधा ओम ढ़ीगरा ,सौमित्र सक्सेना,युवा लेखिका रचना श्रीवास्तव व अन्य आदि ,ब्रिटेन में गौतम सचदेव,अचला शर्मा,पद्मेश गुप्त,जकिया जुबैरी,उषा राजे सक्सेना,तेजेन्द्र शर्मा,उषा वर्मा ,प्राण शर्मा,दिव्या माथुर ,शैल अग्रवाल,जया वर्मा व कई और ,कनाडा में सुमन कुमार घई,ड़ॅा शैलजा सक्सेना, समीर लाल समीर,मारीशस से अभिमन्यु अनन्त ,ड़ेनमार्क में चाँद शुक्ला हदियाबादी,अर्चना पैन्यूली व अरब इमारात में पूर्णिमा वर्मन ,कृष्ण बिहारी आदि साहित्यकारों के नाम उल्लेखनीय हैं I
                            ये सभी साहित्यकार अपनी मानसिक अनुभूति,जीवन-दृष्टि,यथार्थ के प्रति बौद्धिक तथा भावनात्मक- चेतना को लेकर न केवल कविताएँ,गजल,कहानी ,लघुकथा,उपन्यास,संस्मरण व आलेख आदि लिखकर भारतीय हिन्दी साहित्य को एक नई पहचान दे रहें हैं,अपितु इसके साथ-साथ अध्यापन,पत्र-पत्रिकाओं के संचालन,विश्व-हिन्दी सम्मेलनों व गोष्ठियों आदि के आयोजन करके विदेशियों को अपनी भाषायी अस्मिता  से भी रू-ब-रूह करवा रहें हैं I सभी साहित्यकार साहित्य लेखन में हिन्दी की दशा व दिशा,जनमानस की मूलभूत समस्याओं ,जीवन संघर्ष की अभिव्यक्ति व सामाजिक मुद्दों आदि पर लेखन कर रहें हैं I ब्रिटेन की लेखिका "उषा राजे सक्सेना " अपनी पुस्तक "ब्रिटेन में हिन्दी" में दिए गए विषयों पर प्रकाश ड़ालती हुए कहती हैं,"ब्रिटेन में हिन्दी ',ब्रिटेन में हिन्दी बोली,भाषा और साहित्य तीनों पर बात करती है.इसके छ:अध्याय हैं १)ब्रिटेन में हिन्दी का उदभव और विकास,२)विकास में लगी संस्थाएँ ,३)भारतीयों के बीच हिन्दी,४)ब्रिटेन के हिन्दी लेखक और प्रवासी हिन्दी साहित्य,५)ब्रिटेन में बसे हिन्दी साहित्यकार और उनकी कृतियाँ,६)प्रवासी बच्चों के हिन्दी का पाठ्यक्रम I" जहाँ उषा राजे सक्सेना हिन्दी की दशा व दिशा के प्रश्न को उठाती हैं ,वहाँ ब्रिटेन में रहकर 'तेजेन्द्र शर्मा 'बाजारवाद से उपजे संघर्ष से जूझते जनमानस की मनोदशा का चित्रण करते हैं I उनका कहना है,"मैं हमेशा अपने आप को हारे हुए इंसान के साथ खड़ा पाता हूँ .ब्रिटेन में बसने के बाद मेरे साहित्य के विषयों में बदलाव आया है.आज मैं विदेशों में बसे भारतीयों की समस्याओं ,उपलब्धियों और संघर्ष की ओर अधिक ध्यान देता हूँ.मैं देखता हूँ कि मेरे चारों ओर जीवन अर्थ से संचालित है,रिश्तों में खोखलापन समा रहा है,बाजारवाद इंसान की सोच को अपने शिंकजे में कसता जा रहा है.पैदा होने से मृत्यु तक हम कैसे बाजार के नियमों तले दबे रहे हैं,ये सब मेरे साहित्य में परिलक्षित होता है I"
                         ऐसा माना जाता है कि अगर किसी भाषा का प्रचार-प्रसार करना हो तो उसका सबसे अच्छा माध्यम करना होता है Iएक शिक्षक अपनी भाषा में संस्कृति व सभ्यता को अपनाने की बात कहकर साहित्य के प्रति अगाध आस्था को प्रकट करता है I विदेशों में साहित्यकार लेखन-कार्य में अनवरत रत हैं,और साथ-साथ कई साहित्यकार वहाँ एक शिक्षक के रूप में भी विद्यालयों व विश्वविद्यालयों में भारतीय ही नहीं विदेशी विधार्थियों को शिक्षा देकर हिन्दी भाषा के सम्मान को और भी अधिक बढ़ा रहें हैं ,जिनमें सुषम बेदी व कृष्ण बिहारी  का नाम मुख्य रूप से जुड़ा है I अमेरिका की सुषम बेदी कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं.अपने अनुभवों को बताते हुए वे कहती हैं,"अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ा रहना मेरे लिए सहज था I मैं भारत में हिन्दी साहित्य की लेक्चरर थी,लिखती भी थी,वही काम और शौक जारी रखे.मुश्किल जरूर था I अक्सर फिजूल कर्म भी लगा लेकिन अंततः यही मेरे लिये सुखद और आत्मसंतोष देने वाला कर्म था,भाषा सिखाने में आंनद आता था .खासकर जब विधार्थी सीखकर भाषा के इस्तेमाल करने लगते हैं....खुशकिस्मत थी कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का पद भी मिला.इस तरह शौक और काम दोनों का मकसद एक ही हो गया I"
                                 इसी तरह संयुक्त अरब इमारात में रहने वाले  'कृष्ण बिहारी  'भी लेखन के साथ-साथ अध्यापन करके हिन्दी भाषा को उन्नति की ओर अग्रसर कर रहें हैं,"बच्चों को विद्यालयों में हिन्दी पढ़ाता हूँ.भारतीय दूतावास और अपने कुछ मित्रों की सहायता से साल में एक-दो कार्यक्रम कराता हूँ.कुछ बच्चों को हिन्दी में अच्छा वक्ता बनने पर मेहनत करता हूँ I "
                                यह सत्य है कि पत्र-पत्रिकाएँ किसी भी भाषा की स्थिति में सुधारात्मक प्रयास करके उसे प्रगति के उच्च शिखर तक पहुँचाने में सक्षम होती है Iइसी सन्दर्भ में विदेशों में साहित्यकार हिन्दी पत्रिकाओं का संचालन सुरूचिपूर्वक कर रहें हैं I इन पत्रिकाओं में ई-पत्रिकाएँ(आनलाइन ) व मुद्रित रूप से भी सम्पादित की जा रही हैं I जिनमें ई-पत्रिकाओं (आनलाइन) में ' पूर्णिमा वर्मन 'की 'अनुभूति ' व 'अभिव्यक्ति ' अपनी  एक अलग पहचान बना चुकी हैं , और अन्य ई-पत्रिकाओं में शैल अग्रवाल की 'लेखनी ' व अमेरिका से 'ई-विश्वा 'भी ऐसी ही पत्रिकाएँ हैं जो तत्कालीन समाज का दर्शन करवाती है Iअमेरिका से ' शैल अग्रवाल ' ई-पत्रिका 'लेखनी ' के सन्दर्भ में बताती हैं,"लोकप्रियता इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है.आज तीन से चार लाख तक की मासिक हिट है.अब शुरुआत की थी  तो माह के अंत तक मात्र दस हजार हिट होती थी.इस पाँचवें वर्ष के प्रतिदिन करीब-करीब दस हजार हिट होती हैं.साहित्य और शैक्षिक संस्थाओं का ध्यान भी इसकी तरफ गया है और कुछ शिक्षण संस्थाओं ने इसे सन्दर्भ- कोष की तरह से भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.साथ ही नए-पुराने एक ही सोच वाले देश-विदेश के कई अच्छे,लेखक और कवियों का पूर्ण रचनात्मक सहयोग मिला है,लेखनी को I " इस तरह अन्य ई-पत्रिकाओं और मुद्रित पत्रिकाओं में अमेरिका से विश्व-विवेक ,सौरभ व भारती ,इंग्लैंड से पुरवाई,कैनेडा से हिन्दी-चेतना,नार्वे में दर्पण ,शन्ति दूत,फीजी में लहर एवं संस्कृति ,मारीशस में मुक्ता,जनवाणी तथा सुमन ,सूरीनाम से सेतुबंध व यू.ए.ई से निकट आदि भी भारतीय संस्कृति व सभ्यता को कायम रखने के लिए हिन्दी-भाषा के प्रति अपना कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभाकर हिन्दी भाषा के भविष्य को उज्ज्वल एवं सुरभित कर रही हैं I
                               विदेश में हिन्दी के विकास  में जहाँ लेखन-कार्य ,अध्यापन व पत्र-पत्रिकाओं की अहम भूमिका है, वही हिन्दी भाषा को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करने के लिए  छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर पर आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन व गोष्ठियों आदि द्वारा आयोजित कार्यक्रमों का भी अप्रतिम योगदान मिल रहा है I वहाँ साहित्यकार निरन्तर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विविध कार्यक्रम करवाने में प्रयत्नशील हैं I संयुक्त अरब इमारात में रह रहीं लेखिका ' पूर्णिमा वर्मन 'बताती हैं," इमारात में हमारी एक छोटी-सी संस्था है ,शुक्रवार चौपाल के नाम से.जहाँ हम हर शुक्रवार की दोपहर मिलकर हिन्दी की कोई कहानी और नाटक या कविताएँ पढ़तें हैं.साल में तीन या चार नाटक भी करते हैं I" इसी तरह  ब्रिटेन से लेखिका 'दिव्या माथुर ' भी जानकारी देते हुए कहती हैं,"ब्रिटेन में  भारतीय संस्कृति और सभ्यता बड़े पैमाने पर चलता रहा है.भाषा और कला के शिक्षण के जरिए बच्चे अपने को भारत से जुड़ा पाते हैं.मंदिरों ,गुरुदवारों ,स्कूलों और कांउसिल की इमारतों में नियमित कक्षाएं ली जाती हैं.भारतीय विद्या भवन,नहेरू केन्द्र ,पाटीदार समाज जैसे पचासियों आयोजन-स्थल हैं,जहाँ भाषा और सँस्कृति को लेकर बड़े पैमानों पर कार्यक्रम होते रहतें हैं I" इन साहित्यकारों का साहित्य वहाँ के समाज का दर्पण दिखाता है I इनके साहित्य में सत्यम्,शिवम् व सुन्दरम् का वास भी है , तथा लोकमंगल की भावना भी .यू.के के वरिष्ठ गजलकार ' प्राण शर्मा 'का मन्तव्य भी यही है I उनके कथानुसार ,"मेरी दृष्टि में साहित्य वही जीवित रहता है जिसमें लोकमंगल की भावना हो,और जिसमें सत्यम् , शिवम् व सुन्दरम् की स्थापना की गई हो  I "
                                  निश्चित रूप से इन सभी साहित्यकारों ने विदेशी पृष्ठभूमि पर नवीन मूल्यों की स्थापना करके हिन्दी भाषा की दिशा व दशा में बदलाव तथा निखार लाकर उसके वैभव को सम्पोषित किया है I ब्रिटेन से ' उषा राजे सक्सेना ' कहती हैं," मैं ब्रिटेन में मई 1967 से हूँ.तुलनात्मक दृष्टि से देखूँ तो पहले की अपेक्षा आज ब्रिटेन में हिन्दी की स्थिति सम्मानजनक है I ब्रिटेन की भारतवंशी आज विभिन्न प्रकार से मातृभाषा के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन कर रहें हैं I कोई लिखता है,कोई स्पर्धा कराता है,कोई सम्मेलन कराता है,कोई पढ़ाता है,कोई किताबें बेचता है I आज हिन्दी बोलने में लोगों को लज्जा नहीं आती.आपको बाजारों,दुकानों,अस्पतालों ,स्कूलों,विश्वविद्यालयों में लोग आपस में हिन्दी भी बोलते मिल जाएंगे.साँस्कृतिक कार्यक्रमों के सँचालन भी अब अक्सर हिन्दी में होने लगे हैं I
                                हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग एवं सफल मंच पर विराजमान करने का श्रेय इन सभी विदेश में रह रहे हिन्दी भाषा के साहित्यकारों को जाता है I परिणामस्वरूप आज हिन्दी का विकास अन्य भारतीय भाषाओं की कीमत पर नहीं बल्कि उनके साथ हो रहा है, और यहाँ तक कि वह अँग्रेज़ी से प्रतिस्पर्धा न करके अपने सर्वांगीण विकास की ओर उन्मुख हो रही है I
लेखिका--- ड़ॉ  प्रीत अरोड़ा

Friday 7 September 2012

रिश्ता हमारा

                                   तुम दीपक हो
                                  मैं बाती हूँ
                               तुम शमा हो
                               मैं परवाना हूँ
                              तुम सूरज हो
                              मैं किरण हूँ
                            तुम चाँद हो
                            मैं चकोर हूँ
                           तुम फूल हो
                           मैं भवरा हूँ
                        तुम मछली हो
                         मैं जाल हूँ
                         तुम गीत हो
                       मैं साज हूँ
                       तुम कवि हो
                        मैं काव्य हूँ
                      जब हाथों में हाथ है
                   जन्म-जन्म का साथ है
                     डॉ.प्रीत अरोड़ा



Monday 3 September 2012

माँ !तुझे सलाम “

“माँ “
कहते ही
याद आता
एक हँसता-मुस्कुराता चहेरा
तपते हदृय पर,
बादल बन,बरस जाता
हर समस्या का समाधान
होता माँ के पास
न जाने कैसे
वो सब ये करती
सुबह जल्दी उठती
सबकी पसन्दीदा
वस्तुएँ बनाती
सखी बन
मुझसे बतियाती
दुआएँ देती
प्रार्थना करती
ममता लुटाती
सर्वस्व वार देती
माँ
आज हमारे बीच
न होकर भी
कहीं आस-पास ही है
जैसे
सूरज से किरण
पेड़ से छाया
जल से तरंग
अलग नहीं होती
वैसे माँ हर पल
मेरे पास ही है
आज माँ के दिए संस्कार ही
मेरा पथ-प्रदर्शन करते
“माँ ! तुझे सलाम ”

डॉ.प्रीत अरोड़ा

Wednesday 15 August 2012

मित्रों आज आजादी के इस पावन अवसर पर मेरी कविता " फरियाद " प्रस्तुत है .यह कविता उन लोगों की ललकार है जो आज भी आजाद न होकर गुलामी का जीवन जी रहे हैं...................................................

 
                                                             फरियाद
       आजादी के इस पावन अवसर पर
       आइए सुनते हैं इनकी फरियाद
      चीख-चीखकर ये भी कह रहे हैं
       आखिर हम हैं कितने आजाद

       पहली बारी उस मासूम लड़के की
       जो भुखमरी से ग्रस्त होकर
      न जाने हररोज कितने अपराध कर ड़ालता है

       दूसरी बारी उस अबला नारी की
     जो आए दिन दहेज़ के लोभियों द्वारा
       सरेआम दहन कर दी जाती है

       तीसरी बारी उस बच्चे की 
    जो शिक्षा के अधिकार से वंचित
  अज्ञानता के गर्त में गिरा दिया जाता है

     चौथी बारी उस बुजुर्ग की
  जो अपने ही घर से वंचित होकर
 वृद्धा आश्रम में धकेल दिया जाता है

    पाँचवीं बारी उस मजदूर की
   जो ठेकेदार की तानाशाही से
    ताउम्र गरीबी झेलता है

   छठी बारी उस जनता की
 जो नेताओं की दादागिरी के कारण
  मँहगाई की मार सहती है

तो आओ,हम सब इनकी फरियाद सुनकर
      एक मुहिम चलाएँ
सही मायनों में आजादी का अधिकार
       इन्हें दिलाएं

आजादी से सम्बन्धित मेरा एक आलेख भी(आजादी का मन्तव्य क्या ?)....................




                आजादी का मन्तव्य क्या ?
भारत एक आजाद देश है l प्रत्येक वर्ष आजादी का जश्न पूरे भारतवर्ष में बड़ी धूमधाम और उत्साहपूर्वक मनाया जाता है l आजादी से तात्पर्य है--प्रत्येक व्यक्ति को अपने मानवीय मौलिक अधिकारों को प्रयोग करने का पूर्ण रूप से अधिकार हो l चाहे वह निम्न,मध्य या उच्च वर्ग से ही सम्बन्धित क्यों न हो l इसके साथ ही साथ एक साधारण व्यक्ति स्वयं को दूसरे व्यक्ति के समक्ष दलित,दमित व उपेक्षित न महसूस करे अपितु वह अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व को सुरक्षित रख सके l अब प्रश्न यह उठता है ,क्या भारत में रह रहा प्रत्येक व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से आजादी का जीवन व्यतीत कर रहा है ?सन् 1947 को हमारा देश आजाद हुआ और थोड़ा-बहुत सामाजिक मूल्यों में बदलाव भी आया ,परन्तु समाज को परम्परागत रूढ़ियों से आज भी आजादी नहीं मिल पाई lआजादी से पूर्व भी व्यक्ति बेबसी,यातना व गुलामी का जीवन जीने को अभिशप्त था और आजाद भारत में भी वह अपने मानवाधिकारों से वंचित पालकों और मालिकों पर आश्रित रहकर गुलाम ही है lयदि भारत के प्रत्येक व्यक्ति को नागरिक के रूप में समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई व उपयोगी अंग कहा जाता है,  तो उसे मानवीय अधिकारों से अपरिचित तथा वंचित क्यों रखा जाता है ?उसे प्रत्येक क्षेत्र में अपने अधिकारों का उचित उपयोग करने की स्वतंत्रता क्यों नहीं दी जाती ?वह परमुखापेक्षी बनकर जीवन व्यतीत क्यों करता है ?आज भी ऐसे कई सवाल हमारे सामने खड़े हैं l गुलामी के चक्रव्यूह में पुरुष ,नारी,बच्चे व बुजुर्ग आदि सभी वर्ग प्रताड़ित होकर परिभाषित और प्रतिबंधित जीवन जी रहे हैं lअत्याचारों का सिलसिला कहीं रुकता ही नजर नहीं आता l
                                             अगर गुलामी का जीवन जी  रहा व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना भी चाहता है, तो परिवार व समाज द्वारा उस पर ऊंगली उठाकर प्रश्नचिन्हृ लगाए जाते हैं l जब उसे शोषण,अत्याचारों ,उत्पीड़नों के कटहरे में अभियुक्त बनाकर व्यापक मानवता के अनगिनत लाभों से वंचित करके मानसिक रूप से त्रस्त किया जाता है l तब उसे सुरक्षा,सम्मान और समानता का ज्ञान नहीं हो पाता l आज इस गुलामी का स्तर     पारिवारिक,सामाजिक,राजनैतिक,धार्मिक,आर्थिक और शैक्षणिक स्तर पर अबाध गति से बढ़ता जा रहा है l           
पारिवारिक स्तर  पर सदस्यों द्वारा ही एक-दूसरे से भेदभाव करके उसे पराश्रित होने पर मजबूर किया जाता है l खासतौर पर परिवार में नारी की पहचान पुरुष के साथ ही सम्भव मानी जाती है ,यथा-घर से निकलने पर पाबन्दी लगाना,शिक्षा से वंचित करना,मानसिक व शारीरिक रूप से शोषित करना,छोटी उम्र में विवाह कर देना तथा आर्थिक अधिकारों से परावलम्बी बना देना आदि गुलामी की भूमिका को और भी प्रखर कर देते हैं l इसी तरह परिवार में बुजुर्गों की स्थिति भी अत्यंत दयनीय होती जा रही है l वे आत्म-विस्मृति के जाल-जंजाल में फँसकर दीन-हीन पतित बनकर घर की कैद में ड़र एवं भय की हथकड़ियों से बँधकर रह जाते हैं l सामाजिक स्तर  में स्थिति और भी शोचनीय है l समाज में नारी-वर्ग की ओर देखें तो आए दिन भ्रूण-हत्या,बलात्कार ,दहेज-उत्पीड़न व छेड़छाड़ आदि की घटनाएँ दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक बढ़ती ही जा रही हैं l दूसरे ,समाज में बच्चों को लेकर भी ऐसे कई मामले सामने आते हैं जिनसे पता चलता है कि मासूम बच्चों को बंधक बनाकर उनसे रेलवे स्टेशनों और बस-स्टापों पर भीख मँगवाई जाती है l अभिभावकों द्वारा बाल-मजदूरी करवाना भी कानूनी-अपराध ही है l अभिभावक ही अपने बच्चों से बाल-मजदूरी करवाकर उसे असभ्य,अयोग्य एवं अप्रगतिशील बना रहे हैं l बच्चों की तरह बुजुर्ग वर्ग भी सामाजिक स्तर पर दुरावस्था का शिकार हो रहे हैं l इसलिए आज ओल्ड ऐज होम्स की संख्या तेजी से बढ़ती ही जा रही है l बुजुर्ग वर्ग अपनी हिफाजत के लिए इन्हीं संस्थाओं की शरण ले रहे हैं l राजनैतिक स्तर पर योग्य व्यक्ति को उसकी काबलियत के अनुसार अवसर प्रदान नहीं किए जा रहे l उसे वहाँ भी दूसरों के आधीन रहकर कार्य करने को मजबूर होना पड़ रहा है l आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में राजनीति का बोलबाला देखने को मिलता है l इसी कारण भ्रष्टाचार की समस्या भयानक रूप धारण करती जा रही है जिससे आज प्रत्येक व्यक्ति इसकी पकड़ में आ रहा है l
                       धार्मिक स्तर पर कई जगहों पर आज भी उच्च जाति निम्न जाति पर क्रूर और वक्र दृष्टि ड़ालकर उसे समाज से बहिष्कृत कर देती है l निम्नवर्गीय व्यक्ति जीवन से अभिशप्त होकर स्वयं को एक निस्तेज आभाहीन आत्मा की भान्ति महसूस करता है l आर्थिक स्तर पर भी साधारण श्रमजीवी से लेकर सम्पन्न वर्ग के व्यक्ति की स्थिति दयनीय बनती जा रही है l कार्यक्षेत्र में पुरुष-स्त्री दोनों को ही बॅास द्वारा शोषण,स्थानांतरण,कम वेतन और प्रताड़ना के भिन्न तरीकों से साक्षात्कार करवाकर दासता की बेड़ियों में बाँधकर रखा जाता है जिससे वे आजीवन दूसरों के नियंत्रण में रहकर पराधीन बन जाते हैं l ऐसे ही पारिवारिक क्षेत्र में भी कई बार एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य का सम्पत्ति पर से अधिकार छीन लिया जाता है l जब बात शैक्षणिक स्तर की होती है तो प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल अक्षर ज्ञान ही नहीं होता अपितु शिक्षा ही मानव में आत्मसुरक्षा का भाव जागृत करके उसे एक कुशल नागरिक बनाती है l इस बात से भलीभांति परिचित होते हुए भी भारतीय समाज में जहाँ आज भी बेटियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा जाता है, वहाँ लिंगभेद के कारण समाज में नारी के व्यक्तित्व एवं विकास की सम्भावना ही नहीं होती l
         इस तरह व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र में गुलामी के साये में जीवन की बाजी हारकर स्वयं के लिए यथोचित निर्णय ले सकने के अभाव में अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाता और उसका मन और शरीर अमानुषिक यंत्रणाओं को सहने का अभ्यस्त बन जाता है l आज नवीन प्रगतिशील जीवन की आंकाक्षा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व का बोध उसकी स्वतंत्रता की अनूभूति में ही है l आज सबसे अधिक जरूरत है कि व्यक्ति-व्यक्ति के बीच सौहार्दपूर्ण ,आत्मीय सम्बन्धों की समानतापूर्ण स्थापना हो और एक ऐसा मानवीय समाज बने जहाँ कोई भी किसी के साथ बर्बतापूर्ण अमानवीय व्यवहार न करे l प्रत्येक व्यक्ति आत्मसम्मान,आत्मनिर्भरता व आत्मविश्वास की भावना के साथ आगे बढ़े l समाज में जिस व्यक्ति को कमजोर व असहाय समझकर अवहेलित किया जाता है वह भी दूसरों के समान समाज में अपना महत्त्व सिद्ध करके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाए तभी उसे समाज में उचित आदर,सम्मान व स्थान का अधिकारी घोषित किया जा सकेगा l इसके साथ-ही-साथ उन सामाजिक मूल्यों व रूढ़िगत परम्पराओं में भी बदलाव लाना होगा जो एक व्यक्ति को दूसरे के समक्ष दास बनाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं l जब इन सभी बातों का ध्यान रखा जाएगा तब एक स्वस्थ परिवार,समाज व राष्ट्र का निर्माण सम्भव हो पाएगा और प्रत्येक व्यक्ति सही मायनों में आजाद होगा l
लेखिका----डॉ.प्रीत अरोड़ा

E-mail—arorapreet366@gmail.com


Friday 10 August 2012

किताबों की दुनिया








   किताबों का एक अनोखा संसार है
    जिसमे ज्ञान का अक्षय भण्डार है
      मानो या न मानो
  किताबों से ही जीवन में बहार है

किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं
   जो हमें जीना सिखाती हैं
   शिक्षिका के रूप में
हमें पढ़ाकर साक्षर बनाती हैं  

किताबें परियों की कहानी सुनाती हैं
ये अनकही पहेलियाँ भी सुलझाती हैं  
किताबों  से मनचाहे वरदान प्राप्त होते हैं
किताबें पढकर सपने भी साकार होते हैं

किताबों से विद्यार्थी बहुत कुछ पाता है
किताबें ही उसकी भाग्य निर्माता हैं
किताबों की यही तो निराली अदा है
इसलिए सारी दुनिया इन पर फिदा है 

 

Thursday 21 June 2012

नव -चेतना

आओं मिलजुल कर जीवन खुशहाल बनाये
समस्याओ का निदान कर नवचेतना जगाये
यथार्थ के धरातल पर पैर जमाये
आत्म- सयंत कर स्वयं को मजबूत बनाये
आंतकवाद ,भ्रष्टाचार से लड़ समाज को स्वस्थ बनाये
गौतम गाँधी के मार्ग पर चलकर
मातृ-भूमि को स्वर्ग बनाये
दहेज़ प्रथा ,भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों को जड़ से मिटाएं
आज के बच्चे कल के नेताओं का
जीवन सफल बनाये
सादा जीवन उच्च विचार
ऐसा आदर्श अपनाये
सत्यम शिवम् सुन्दरम का पंचम लहराए
नव जागरण का गीत गाये
वैर -विरोध की भाषा भुलाकर
प्रेम प्यार का बिगुल बजाये
आओ मिल जुल कर जीवन खुशहाल बनाये