“ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक
दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का
स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को प्यार से सहलाती हुई मुझे समझा रही थी , “ जब कोई भी व्यक्ति आत्मविश्वास और पूर्णनिष्ठा
से कर्मयोगी बनकर किसी भी पथ पर अग्रसर होता है तो सफलता अवश्य ही उसके चरण चूमती
है .इसलिए हमें ये बातें जीवन में सदैव याद रखनी चाहिए ”
.
माँ द्वारा कही गई उपरोक्त
बातें मेरे लिए अमृतमय घुटी के समान थी .एकाएक दीदी की आवाज़ “ चल उठ ,तुझे
कालेज जाना है ” सुनकर मेरी नींद खुल गई .मैं नहा – धोकर झटपट कालेज जाने के लिए तैयार हो गई .घर
से बाहर निकलते ही गली के मोड़ पर बहुत-से लोगों का हुजूम ढ़ोल-ढमाके की धुन पर
नाचते हुए आगे बढ़ रहा था .चार लोगों के कन्धों पर सवार मिस्टर वर्मा गले में ढ़ेर
सारी फूलों की मालाएं पहने लोगों की वाहावाही लूट रहे थे .कुछ लोग उनके नाम की जय – जयकार करते हुए स्वयं को कैमरे में कैद करवाने
के लिए भरसक कोशिश में लगे थे .पता लगा कि मिस्टर वर्मा जी राज्य में मंत्रीपद के
लिए मनोनीत हुए हैं .ऐसा सुनते ही मुझे जोरदार झटका लगा और मिस्टर वर्मा के जीवन
के अतीत की परछाइयाँ मेरी मानस –पटल पर उभरने
लगी .सिर्फ बारहवीं पास वर्मा जी की विचार-शक्ति अक्सर लड़ाई-झगड़ों ,दादागिरी व रिश्वतखोरी में ही अपना कमाल दिखाती
थी .एक समय था जब वर्मा जी गलियों की धूल फांकते इधर-उधर भटकते थे .पर आज दुराचारी
मिस्टर वर्मा ने पैसे और ताकत के बल पर ही राज्य में मंत्रीपद को बड़ी आसानी से
प्राप्त कर लिया .
मेरे कदम कालेज की ओर
बढ़ते जा रहे थे परन्तु दिमाग वही का वही उलझा हुआ था और मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि
आज प्रत्येक क्षेत्र में पैसे ,सता और ताकत के
बल पर नाम ,शोहरत व मान –सम्मान
इत्यादि ब्रिकी की वस्तुएं बन गई है .जबकि प्रतिभावान व्यक्ति अपने सुनहरे और सुखद
सपनों को धराशायी होते हुए देखता रह जाता है .उसकी स्थिति ठीक उस पंछी के समान
होती है जिसके उड़ने से पहले ही पंखों को काटकर पिंजरे में बन्द कर दिया जाता है
जहाँ सिर्फ और सिर्फ वह मायूस होकर अपने पंख फड़फड़ाकर अपने भाग्य को कोसता है
.पिछले ही दिनों मेरा एक हिन्दी सम्मेलन में जाना हुआ .कार्यक्रम में अध्यक्ष
महोदय ने अचानक वहाँ उपस्थित लेखिकाओं में से एक सुप्रसिद्ध लेखिका को मंच पर दो
शब्द कहने के लिए आमंत्रित कर लिया.लेखिका महोदय डगमगाते कदमों से मंच पर पहुँचकर
लड़खड़ाती आवाज़ में श्रोताओं को सम्बोधित कर रही थी .लेखिका के मुख से निकले शब्दों
और विचारों का आपसी तालमेल नहीं था .इतने में एक जोरदार हंसी का ठहाका कानों में
सुनाई दिया.लेखिका महोदया सकपकाती हुई अपनी बात को आधी – अधूरी
कह मंच से उतर गई .आश्चर्य की बात तो यह हुई कि सम्मारोह के अन्त में उसी लेखिका
को मान – सम्मान से नवाज़ा गया और अध्यक्ष महोदय
उनकी प्रंशसा के पुल बाँधते हुए नज़र नहीं समा रहे थे .
मैं वहां बैठी
सोचने लगी कि आज व्यक्ति को उसकी प्रतिभा से नहीं अपितु उसके नाम से जाना जाता है
.यहाँ तक कि अगर बात किसी भी साहित्य-जगत से सम्बन्धित की जाए तो इतिहास गवाह है
कि हमारे प्राचीन गरिमापूर्ण समृद्ध माने जाने वाले साहित्य की तुलना में आज का
साहित्य मात्र गिनती के कुछ साहित्यकारों को छोड़कर अपरिपक्व है और कई रचनाकारो
द्वारा बाजारू व अश्लील भाषा को भी परोसा जा रहा है .ऐसे में लोग रातों – रात प्रसिद्धि और मान –सम्मान
को प्राप्त करने की लालसा में गणमान्य साहित्यकारों की श्रृँखला में आने के लिए
कोई न कोई रास्ता अपना ही लेते हैं .सही मायनों में साहित्य का उद्देश्य मानवता का
उद्धार करते हुए उसे सही दिशा दिखाना है परन्तु ऐसे लोग मानवता की बात को छोड़ अपना
उद्धार तो कर ही लेते हैं इनके द्वारा
लिखे जा रहे साहित्य का कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता अपितु ऐसा साहित्य पढ़कर पाठक –वर्ग तनाव व भटकाव से उत्पन्न कुण्ठाग्रस्त
स्थिति को अवश्य भोगता है .परिणामस्वरूप हताश हुआ मानव नैतिक मूल्यों को भूलकर
दूषित मानसिकता के तहत जघन्य अपराधों को अंजाम देता है .यही कारण है कि आज हिन्दी साहित्य में दूसरा प्रेमचन्द
,अंग्रेज़ी साहित्य में दूसरा जार्ज
बर्नाड शाह और पंजाबी साहित्य में दूसरा वीर सिंह नहीं हुआ. आज हमारी संस्कृति – सभ्यता ,भाषा
व देश का अस्तित्व खतरे में है .साहित्य समाज के लिए एक प्ररेक और मार्गदर्शक का
काम करता है पर जब ऐसे ही अपरिपक्व ,कूड़ा-कर्कट
व बाजारू साहित्य की सृजना की जाएगी तो उस पर सुदृढ़ समाज की स्थापना कैसे सम्भव है
.इसलिए आज हमें सोचना होगा कि हम प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति को मान –सम्मान दें या केवल शोहरत का लबादा ओड़े
प्रतिभाहीन व्यक्ति की जय – जयकार करें .
डॉ प्रीत अरोड़ा