Monday 25 February 2013

बुद्धिमान चूहे (बाल -कहानी )



किसी गाँव में रानी मौसी बिल्ली रहती थी .वह सब बिल्लियों की बुजुर्ग थी .सभी बिल्लियां मौसी का बहुत आदर करती थीं .पूरे गाँव में उसकी चतुरता के कारण मौसी का बोलबाला था .वह अपने आप को सबसे ज्यादा अकलमंद समझती थी .एक दिन मौसी ने सोचा कि क्यों न नए साल के  मौके पर सब बिल्लियों को चूहों की दावत देकर अपना रौब जमाया जाए .इसलिए रानी मौसी अपने घर में रखे एक बड़े पिंजरे में चूहों को पकड़कर कैद करने लगी .
                      चूहो की बढ़ती गिनती को देखकर रानी मौसी के मुँह से लार टपकती और मौसी सोचती कि चलो आज एक आध तो खा ही ड़ालूँ .परन्तु फिर सोचती अगर अभी खा गई तो दावत का क्या होगा ? उधर चूहे आने वाली मौत की आहट को पहचान कर परेशान हो रहे थे .इतने में एक चूहे ने सभी को कहा , “ भाइयों यहाँ से भाग निकलने की कोई तरकीब सोचो नहीं तो हम सब बेमौत मारे जाएगें ”
इतना सुनते ही कुछ चूहे बैचेनी में इधर-उधर उछल-कूद करने लगे.अचानक एक चूहा पिंजरे की सलाखों से टकराकर गिर गया और बेहोश हो गया.तभी एक बुजुर्ग चूहा जो पिंजरे के एक किनारे में दुबक कर चुपचाप बैठा कुछ सोच रहा था एकदम फुदक कर बोला ,“ साथियों मुझे एक तरकीब सूझी है ” और सारे चूहे एक –दूसरे से खुसर-फुसर करने लगे .बनाई हुई योजना के मुताबिक जब शाम को रानी मौसी पिंजरे के करीब से गुजर रही थी तो इतने में बुजुर्ग चूहा जोर से चिल्लाया ,“ अरे देखो , भाई हमारे साथी को क्या हो गया ? बेचारा भूख के कारण तड़प- तड़प इस दुनिया से चल बसा . ” बुजुर्ग चूहे की बात सुनकर एक अन्य चूहा बोला , “ हरे , राम क्या तुम्हें पता है  कि इसके मरने से यहाँ अब प्लेग की बीमारी फैल जाएगी इसलिए अब हम सभी भी एक-एक करके मारे जाएगें ” चूहों की बात सुनकर रानी मौसी घबरा गई और हड़बड़ाकर बोली , “ ओह ,जल्दी बताओ इससे बचने का कोई तो तरीका होगा sss . इतने में बुजुर्ग चूहा बोला , “ हम्म्म्म एक तरीका है रानी मौसी .
 “ क्या क्या तरीका है जल्दी बोलो ” -- मौसी बोली
बुजुर्ग चूहा बोला ,“ मौसी यदि आप इस चूहे को इस पिंजरे से बाहर निकाल दें तो हम सब फैलने वाली प्लेग की  बीमारी से बच जाएगें .”
मौसी ने चूहे की बात सुनते ही पिंजरे का दरवाजा जैसेही खोला वैसेही सभी चूहे छलांग लगाते हुए पिंजरे से बाहर की ओर भाग खड़े हुए और बुजुर्ग चूहा चिल्लाया , “ क्यों रानी मौसी ,कैसी रही .”
रानी मौसी ने जब पिंजरे पर नज़र ड़ाली तो वहाँ वह मरा हुआ चूहा भी नहीं था .मौसी को अपनी मूर्खता पर बहुत अफसोस हो रहा था .
शिक्षा—मुसीबत के समय में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए
डॉ.प्रीत अरोड़ा


Thursday 14 February 2013

खुशखबरी



समीरा पत्रिका जोकि हस्तनिर्मित ( ईकोफ्रेंडली ) कागज पर मुद्रित पत्रिका है .जो विशेष रूप से नारी – वर्ग के लिए काम कर रही है .पत्रिका के फरवरी और मार्च अंक का अतिथि सम्पादन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है .मार्च का अंक वरिष्ठ लेखिका उर्मिला शिरीष जी पर केन्द्रित करते हुए नारी जीवन से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आधारित होगा .पत्रिका की सम्पादिका मीरा जी हैं . इसके लिए मीरा जी को बधाई और धन्यवाद