मित्रों मृदुला गर्ग जी हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध लेखिका हैं.मेरा यह सौभाग्य है कि मैंने शोध कार्य (पी.एचडी ) भी मृदुला जी के कथा-साहित्य पर किया.प्रस्तुत है लेखिका मृदुला गर्ग जी से संक्षिप्त बातचीत..
हिन्दी की सुप्रसिद्ध एवं स्तम्भकार लेखिका मृदुला गर्ग जी का हिन्दी कथा-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है.इनकी छवि हिन्दी-साहित्य में एक गम्भीर लेखिका की है.इन्होंने नारी-विमर्श,बाल-जीवन, सामाजिक सन्दर्भों और पर्यावरण आदि प्रत्येक विषय पर लेखन के माध्यम से सफलता हासिल की है. इनके कथा-साहित्य के अन्तर्गत उपन्यासों में उसके हिस्से की धूप चितकोबरा, कठगुलाब और कहानियों के अन्तर्गत कितनी कैदें,दुनिया का कायदा, हरी बिन्दी, ड़ैफोड़िल जल रहे हैं, मेरा, अवकाश इत्यादि बहुचर्चित हैं.प्रस्तुत है लेखिका मृदुला गर्ग के साथ ड़ा प्रीत अरोड़ा की विशेष बातचीत
(१) प्रश्न—आपके लेखन की शुरुआत कैसे और कब हुई और आपका प्रेरणा -स्त्रोत कौन है ?
(१) उत्तर–मेरे लेखन कि शुरुआत १९७१ में हुई . प्रेरणा स्रोत तो जीवन ही है. उसमें अनेक उतार चढाव देख़ें और अनेक विलक्षण व्यक्तियों से भेंट हुई.
(२) महिला लेखिकायों मे किस महिला -लेखिका से आप अत्यधिक प्रभावित हुई हैं और क्यों ?
(२) उत्तर–किसी महिला लेखक से विशेष रूप से प्रभावित नहीं हुई. मेरे पसंदीदा लेखक अधिकतर पुरुष रहे हैं. अगर स्त्री का नाम लेना ज़रूरी हो तो अंग्रेजी की टोनी मोरीसन और उर्दू की कुरुत्तुलीन हैदर मुझे बहुत प्रभावित करती रही हैं. इसलिए कि उनका सन्दर्भ क्षेत्र अत्यंत व्यापक है और वे किसी वाद या विचार धारा से बंधी नहीं हैं. टोनी मोरीसन ने विशेष रूप से काले अमरीकी लोगों के बारे में लिखा अवश्य पर उनका लेखन मनुष्य मात्र पर लागू होता है. उनकी संवेदना का क्षेत्र निस्सीम है. कुरुत्तुलीन हैदर की इतिहास दृष्टि अदृभुतहै. वैसी इतिहास दृष्टि किसी पश्चिमी लेखक या अन्य भारतीय पुरुष लेखकों में नहीं मिलती.
(३)प्रश्न–सही अर्थो मे नारी की मुक्ति किससे है ?
(३)उत्तर–व्यवस्था के भ्रष्ट स्वरूप और रूढ़ अंध विश्वासों से.
(४)प्रश्न–स्त्री –सशक्तीकरण की सही दिशा कौन -सी है?
(४)उत्तर–शिक्षा और रोज़गार. आर्थिक आत्म निर्भरता और विवेक के इस्तेमाल का साहस.
(५)’प्रश्न–कठगुलाब ‘उपन्यास आपका सर्वाधिक चर्चित उपन्यास है .इस उपन्यास में आपको सबसे अधिक प्रिय नारी -पात्र कौन -सा है ?और क्यों ?
(५)उत्तर—-मरियान. क्योंकि वह अमरीकी होते हुए भी भारतीय स्त्री के करीब है. उसमें साहस है की वह उन अमरीकी मूल्यों को नकारे जिन्हें वहां सर्वअधिक मान्यता प्राप्त है. वह लम्बे संघर्ष के बाद अपनी अस्मिता की पहचान करती है और पूर्वाग्रहों का त्याग करके, लेखन करने का साहस जुटा लेती है. वह सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में खुद को स्थापित नहीं करती बल्कि अपने भीतर अकेले में खुद को पा लेती है.
(६)प्रश्न—-’मिलजुल मन ‘उपन्यास का शीर्षक किस भावना का प्रतीक है ?
(६)उत्तर—मन का अर्थ अत्यंत बहुआयामी है. वह दिल भी है, मस्तिष्क भी. चेतना और कल्पना संसार भी. अस्तित्व भी वही है. मन के साथ मिल कर जो काम कर सके या जो अपने मन को पहचान ले वही अपने अस्तित्व को भी सही अर्थ में पा सकता है.
(७)’प्रश्न–मिलजुल मन ’उपन्यास मे मोगरा और गुल क्या वास्तविक जीवन के नारी-पात्र हैं अथवा काल्पनिक ?
(७)उत्तर- -पात्र वास्तविक जीवन से लिए हैं पर उनका जीवन वृत्त पूरा का पूरा वैसे नहीं चित्रित किया गया जैसा अंत तक घटित हुआ. उन्हें औपन्यासिक बना कर पेश किया गया है.उन्ही घटनाओं को लिया है जो कथानक के लिए ज़रूरी या रसपूर्ण थीं .
(८)प्रश्न–क्या ‘मिलजुल मन ‘उपन्यास एक स्त्रीवादी उपन्यास माना जा सकता है ?
(८)उत्तर–मेरे हिसाब से कोई उपन्यास स्त्रीवादी नहीं होता. उसमें श्लेष व् अनेकार्थता होती है. उसके अनेक पाठ हो सकते हैं. मिलजुल मन तो आंतरिक जीवन में औरत मर्द में अंतर न करके दोनों को अभिव्यंजित करता है. और देश के नव स्वाधीन स्वरूप की व्यंजन भी उसी तरह करता है कि वह मानवीय है, किसी एक गुट, वाद या लिंग का पक्षधर नहीं .
(९)प्रश्न–आज ऐसा माना जा रहा है के हिंदी भाषा का अस्तित्व संकट मे है ?क्या आप इस बात से सहमत हैं ?
(९)उत्तर–हाँ. हिंदी साहित्य का पठन युवा मध्यम वर्ग में कम होता जा रहा है. पढना लिखना सीखते ही लोग अंग्रेज़ी की लोकप्रिय और सतही पुस्तक पढना पसंद करने लगते हैं.अखबार भी अंग्रेजी का पढ़ा जाता है, संगोष्ठीअंग्रेजी में होती है. हाल में पुरानी दिल्ली की तहजीब पर IIC में जलसा हुआ . वहां भी किन्ही गणमान्य व्यक्ति ने आरम्भिक भाषण अंग्रेजी में दे कर आमंत्रित लोगों का स्वागत किया जो बहुत ही हास्यास्पद था. इस सब से लगता है हिंदी का अस्तित्व अब पढ़े लिखे लोगों के नहीं नव साक्षर लोगों के हाथों में है.
(१०)प्रश्न-भविष्य मे आपकी क्या योजनाये हैं ?
उत्तर-पता नहीं. भविष्य के लिए योजना नहीं बनाती. जो जब मुमकिन हो जाए कर लेती हूँ.
(१०)प्रश्न–आप नवोदित लेखको को क्या सन्देश देना चाहती हैं ?
उत्तर–वाद या विचारधारा पर निर्भर न रह कर अपने विवेक पर आस्था रख कर लेखन करें और संभव हो तो वैसे ही जिएँ भी.
साक्षात्कारकर्ता———-ड़ॉ प्रीत अरोड़ा
bahut shandar prstuti ..........
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDelete(४)प्रश्न–स्त्री –सशक्तीकरण की सही दिशा कौन -सी है?
ReplyDelete(४)उत्तर–शिक्षा और रोज़गार. आर्थिक आत्म निर्भरता और विवेक के इस्तेमाल का साहस.
में मृदुला जी के इस उत्तर से पुर्णतः सहमत हूँ.....
जी वाह ! आनंद आ गया सभी प्रश्न सटीक और प्रासंगिक अंतिम प्रश्न का उत्तर बहुत अच्छा लगा | आपको हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआपकी अनुमति हो तो यह साक्षात्कार अपनी पत्रिका में भी लेना चाहूँगा....
ReplyDeleteचर्चा सारगर्भित है ।" कोई उपन्यास स्त्रीवादी नहीं होता ", मृदुला गर्ग जी की इस बात से सहमत हूँ । उपन्यास हो या कहानी या कविता मानववादी होती है, हाँ केंद्र में स्त्री हो सकती है ।
ReplyDelete- शून्य आकांक्षी