Wednesday, 30 May 2012

मेरे जीवन की सत्य घटना पर आधारित संस्मरण--जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है

 शक्ति से तात्पर्य है-बल,ऊर्जा अथवा ताकत Iशक्ति के अनेक रूप हैं जैसे-प्राकृतिक शक्ति,शारीरिक,मानसिक , बौद्धिक व आध्यात्मिक शक्ति इत्यादि I इनमें से सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्राकृतिक शक्ति मानी गई है I प्राकृतिक शक्ति भी दो प्रकार की होती है-एक बाह्य शक्ति जोकि प्रकृति प्रदत्त होती है जैसे पहाड़,पेड़-पौधों,सूरज,चाँद,नदियाँ आदि.और दूसरी शक्ति आन्तरिक शक्ति है जो मनुष्य के अन्दर उसकी आत्मा में व्याप्त होती है जिसे हम इच्छा शक्ति भी कहते हैं I शक्ति उस ऊर्जा का नाम है जिससे मनुष्य प्रोत्साहित होकर उन्नति के उस मार्ग को प्रशस्त कर सकता है ,जहाँ पहुँचने की उसने कभी कल्पना भी नहीं की होती I शक्ति उसे प्ररेणा देती है तथा उसी शक्ति के माध्यम से ही मुर्दा शरीर में भी जिजीविषा उत्पन्न हो जाती है Iआत्मिक शक्ति किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन में आगे बढ़ने और उन्नति के उच्च शिखर तक पहुँचने के लिए अनिवार्य है I मैं आज अपने जीवन की एक वास्तविक घटना को प्रस्तुत कर रही हूँ जो आत्मशक्ति की जिन्दा मिसाल हैI
                                                   बात तब की है जब मैं बी.ए के प्रथम वर्ष में थी तो मेरे जवान भाई की आकस्मिक मृत्यु होने के कारण हमारे परिवार में ऐसी निराशाजनक स्थिति उत्पन्न हो गई जिससे हमें ऐसा प्रतीत होने लगा कि अब हमारे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है I मानसिक तनाव के कारण मैंने अपनी पढ़ाई भी बीच में ही छोड़ दी I मुझे ऐसा लगने लगा कि यदि जीवन का अंत मृत्यु ही है तो फिर जीवन में कुछ कार्य करने और आगे बढ़नें का क्या महत्व है ?मेरी माँ जोकि आध्यत्मिक प्रवृत्ति की हैं तथा उनकी प्रभु में अटूट आस्था व विश्वास है I उनके विचारानुसार वह स्वयं को कभी भी अकेला महसूस नहीं करती I उनका कहना है कि एक आन्तरिक शक्ति हमेशा ही उनका पथ-प्रदर्शन करती है और उसी आत्मिक शक्ति के बल पर उन्होंने इस असहनीय दुख को भगवान की यही मर्जी है सोचकर सहन कर लिया I जहाँ मुझे अपनी माँ का सम्बल बनकर उनको साँत्वना देनी चाहिए थी वहाँ मेरी माँ ने मुझे निराशा के अन्धकारमयी गर्त से उबारा I
                       माँ ने मुझे बड़े प्यार से समझाते हुए कहा ,“बेटी मैं मानती हूँ कि हमारे परिवार पर बहुत बड़ा कहर टूटा है Iयह घाव धीरे-धीरे ही भरेगा I तुम्हारे भाई तो वो बाद में था पहले मेरा बेटा था I पर प्रकृति के आगे किसका जोर चलता है I उठो,अपने भीतर की आत्मशक्ति जगाओ और अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी पढ़ाई पूरी करो,क्योंकि अब तुम ही हमारा सहारा हो और बेटा भी I”माँ की इन बातों का मुझ पर कोई असर नहीं हो रहा था क्योंकि कहीं न कहीं मेरे मन पर निराशा का साया पूरी तरह हावी हो चुका था I मेरी माँ ने मेरा कालेज में दाखिला भी करवा दिया परन्तु मैं कालेज जाने को तैयार न हुई.तो माँ ने सोचा कि क्यों न मैं इसे कहीं बाहर घुमाने के लिए ले जाऊँ.ऐसा सोचकर वे मुझे बाहर घुमाने के लिए बस स्टाप पर ले गईं I बस आने में अभी देरी थी I तभी वहाँ एक लड़की अपनी व्हील  चैयर पर बैठकर अकेली आई.वह भी हमारे साथ बस की इंतजार करने लगी I मैंने देखा कि उस लड़की के चेहरे पर एक ओज विद्यामान था Iजैसे ही बस आई वह फूर्ति से अपनी बैसाखी के सहारे व्हील चैयर को बंद करके बगल में दबाये बस में चढ़ गई.तीनों सीटों वाली सीट पर खिड़की के साथ वह लड़की बैठे गई और उसके साथ ही मेरी माँ और मैं भी बैठ गई.वह लड़की हल्का-हल्का कुछ गुनगुना रही थी जिससे उसका उल्लास प्रकट हो रहा था Iमौका मिलते ही मेरी माँ ने उससे बातचीत शुरू कर दी I उसने अपना नाम दुर्गा बताया और उसकी उम्र लगभग चौबीस वर्ष थी I उसने बताया कि वह एक मध्यवर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखती है और उसके पिता जी का देहांत हो चुका है I उसकी माँ घरेलू व अशिक्षित महिला है I उसके दो भाई-बहन भी हैं I इसलिए उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए वह स्कूल में संगीत का अध्यापन करती है और यही नहीं वह अपनी शैक्षणिक योग्यता को बढ़ाने के लिए स्वयं भी आगे पढ़ रही है I वह अपने भाई-बहन को पढ़ाकर उनका भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहती है I दुर्गा ने बताया कि उसने अपनी छोटी-सी उम्र में ही बहुत मुश्किलों का सामना किया है परन्तु उसने कभी भी हार नहीं मानी I आज वह किसी पर पराश्रित नहीं है और न ही किसी की दया की मोहताज़ है I अपितु वह कुछ बनकर दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहती है I यह सुन माँ दुर्गा से कहने लगी, “बेटी तुम इतना सबकुछ कैसे कर लेती हो ?’’
एक अनोखे अन्दाज़ से मुस्कराते हुए दुर्गा ने कहा, “आँटी जी यह तो बस प्रभु की कृपा है क्योंकि जहाँ चाह वहाँ राह I आपको एक शेर सुनाती हूँ-जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है,मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं .” मैं चुपचाप माँ और दुर्गा की बातें सुन रही थी I दुर्गा के विचारों को सुनकर मुझे मन-ही-मन ग्लानि महसूस होने लगी कि दुर्गा शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने पर भी मानसिक रूप से कितनी शक्तिशाली है.उसके जीवन का एक उद्देश्य है I उसकी बातों से प्रेरित होकर उस दिन मैंने भी एक प्रण लिया कि दुर्गा की तरह मैं भी अपने जीवन में कुछ बनकर दिखाऊँगी I बस फिर क्या था मैंने बी..पूरी की और एम.ए हिन्दी में एड़मिशन लिया I यही नहीं मैंने एम..हिन्दी के दोनों वर्षों में पँजाब विश्वविद्यालय में 72 प्रतिशत अंकों के साथ प्रथम स्थान भी प्राप्त किया.फलस्वरूप टेलीविजन के चैनल पँजाब टुडे के सीरियल (कुड़ीए मार उड़ारी) के लिए मेरा इन्टरव्यू भी लिया गया,जिससे मुझे एक नई पहचान मिली I अपनी माँ की प्ररेणा और दुर्गा की सीख से ही आज मैंने हिन्दी में पी.एच.ड़ी भी पूरी कर ली है I
                  अब उच्च शिक्षा प्राप्त करके मैंने यह महसूस किया कि मेरे विचार मेरे मन के भीतर हलचल मचा रहें हैं और वे अभिव्यक्ति पाना चाहते हैं I इसलिए मैंने अपनी भावनाओं को एक लेख के रूप में पिरोकर एक नामी पत्रिका को भेजना चाहा पर यहाँ भी मेरे धैर्य और शक्ति की परीक्षा ली गई I पत्रिका की सम्पादिका से मैंने फोन पर बात की और मैंने कहा, “मैं चाहती हूँ कि मैं अपना एक लेख आपकी पत्रिका के लिए भेजूँ .” इस पर सम्पादिका ने दो टूक उत्तर देते हुए कहा कि ,“ चाहने से क्या होता है I जीवन में हम सभी कुछ न कुछ चाहते हैं पर यह जरूरी नहीं कि हमारी हर चाहत पूरी हो I इसलिए हम आप जैसी नयी लेखिका को कोई मौका नहीं दे सकते I ”  सम्पादिका के ऐसे विचारों को सुन कर भी इस बार मेरे मन में कहीं निराशा नहीं आई,अपितु मैंने अन्य पत्रिकाओं में अपनी रचनाओं को प्रकाशित कराने का भरसक प्रयास करती रही क्योंकि मैं यह जान चुकी थी कि असम्भव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में ही होता है I फलस्वरूप मेरा प्रयास रँग लाया.आज मेरे लेख,कविताएँ,शोध-पत्र व साक्षात्कार इत्यादि कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहें हैं I आज मेरी भी एक पहचान है.इसलिए बहुत जरूरी है कि यदि व्यक्ति अपने भीतर की आत्मशक्ति को जागृत करें और दृढ़ निश्चय के साथ अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर हो,तो उसे समय तो लग सकता है लेकिन वह कभी असफल नहीं होगा I अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि जितने भी महान लेखक या महान व्यक्ति हुए हैं ,चाहे वे किसी भी क्षेत्र से ही सम्बन्ध रखते हो.उनका प्रतिभाशाली व्यक्तित्व उनके अदम्य साहस,धैर्य व आत्मशक्ति के ही परिणामस्वरूप होता है I किसी लेखक ने ठीक ही कहा है---
हम होंगे कामयाब,हम होंगे कामयाब,एक दिन
  हो-हो मन में है विश्वास,पूरा है विश्वास,
हम होंगे कामयाब एक दिन I” 

लेखिका----ड़ॉ प्रीत अरोड़ा

6 comments:

  1. धैर्य और आत्मबल की बदौलत कोई भी मुकाम पाया जा सकता है।

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  2. आँख भर आई,आपकी आप-बीती पद कर.सचमुच प्रेरणादायक.

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  3. प्रीत... जिसे पढ़कर शब्द गुम हो जाते हैं उसके लिए स्नेह का एक अटूट...अनाम रिश्ता तय हो जाता है...प्यार सहित...

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    1. बहुत खूब. प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद

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  4. shabd nahi bayan karne ko ki vastvikta me hu b hu vahi aayam najar ke samne tha jaise-jaise aage padhti gai .........har shabd me jan thi , har sbad me vastvikta thi or har labj me ek sikh hai ...... chalate raho rah par jisaka kahi khatma nahi,chahe ham rahe na rahe bas amar ho jae yado me sabki aisa kuchh kar jae... dhanyavad......
    aapki shubhchintak,
    kavita..........
    pyari prit di....

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