Thursday 10 May 2012

संस्कारों से बढ़कर कुछ नहीं

भारतीय समाज के अन्तर्गत सभ्यता व संस्कृति की अमूल्य देन है हमारे संस्कार l संस्कार ,रीति-रिवाज,मूल्यों व मान्यताओं का ऐसा अनूठा सगंम है जिसे हमारे पू्र्वजों ने संजोकर रखा l परन्तु विड़म्बना यह है कि आधुनिक युग में हम अपने संस्कारों को भूलकर पैसा और शोहरत कमाने के चक्कर में पड़ गए हैं l यदि देखा जाएँ तो हमारे संस्कारों से बढ़कर कुछ मूल्यवान नहीं है l ये संस्कार ही हैं जो हमें मानवता का पाठ पढ़ाकर एक सम्वेदनशील व चरित्रवान व्यक्ति बनाते हैं l आज अगर समाज में अत्याचार ,लूटपाट,चोरी व ड़कैती बढ़ रही है तो उसका कारण संस्कारविहीन समाज का होना है l पर हमनें क्या कभी सोचा है कि संस्कारों को भूलकर जीवन जीना कहाँ तक सार्थक सिद्ध होगा ? इसलिए आज बहुत जरूरी है कि हम फिर से अपनी संस्कृति व सभ्यता रूपी धरोहर को समेटने के लिए उठ खड़े हो l
 ड़ा प्रीत अरोड़ा  

1 comment:

  1. प्रीत .....आप के मन के भाव बहुत अच्छे हैं और उतनी ही सुंदरता से आपने अभिव्यक्ति दी है ....मुझे आपका ब्लॉग ज्वाइन कर बहुत खुशी हुई ....सार्थक लेखन है आपका ...!
    यही प्रयास जारी रखें ....
    बहुत बहुत शुभकामनायें ....!!

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