Sunday 3 June 2012

संघर्षों के इस मैदान में


संघर्षों के इस मैदान में
जीवन की रेलगाड़ी
तेज रफ्तार से आगे बढ़ती जाती है
कभी दुःखों के हिचकोले खिलाकर
तो कभी सुखों की गोदी में सुलाकर
मुँह से उफ से आह कहलावती है

--ड़ा प्रीत अरोड़ा

24 comments:

  1. ye relgaadi hoti hi aisi hi hai ....bahut badhiya preet ji

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  2. . बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति

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  3. DR PREETE ARORA JI UTTAM PANKTIYA SUNDER BHAW AUR USSE BHI SUNDER ABHIVYAKTI SHRESHTHA RACHNA.

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अमर जी

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  4. मुँह से उफ से आह कहलावती है ....बहुत खूब
    मेरे मुँह से वाह कहलावती आपकी रचना ... !!

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  5. आप सभी का कोटि-कोटि धन्यवाद

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  6. इसी कों तो जीवन कहते हैं .. सुख दुःख आना जाना है ..

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  7. वाह ...बहुत खूब

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  8. जीवन के सन्दर्भों को उद्घाटित करती आपकी यह रचना बहुत प्रभावशाली है .....!

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  9. bahut hi sateek vprabhav purn prastuti
    hardik badhai
    poonam

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  10. बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता । मेरा नया पोस्ट आपका इंतजार कर रहा है । धन्यवाद ।

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  11. Gagar me sagar...kam sabdon me sundar abhvyakti badhai Preet jii

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  12. very good Preet ji.....
    wah-wah ...
    ye aawaj seedha dil se nikli hai.....

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  13. आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद

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