संयोग
(कहानी )
"बेचारी बच्ची बारिश में भीग गई है I शुक्र है कि हमने इसे सही समय पर उठा लिया अजीत I नहीं तो पता नहीं ,वहाँ खड़े कुत्ते इस नन्ही जान का क्या हाल करतें ?कैसी माँ है ? बेरहम, जिसने इसे कूड़ेदान में .......” यह कहते हुए विभु का गला भर आया l
घर में खुशी का माहौल
था l चारों तरफ जश्न
जोरों पर था l अनु भी
बहुत खुश थी कि आखिर उसके घर खुशियों ने दस्तक दे ही दी l माँ बनने की खुशी क्या होती है अनु आज यह महसूस
कर रही थी I विवाह
के बाद दस वर्ष अनु ने मातृत्व सुख प्राप्त करने के लिए कौन-कौन से इलाज नहीं करवाएं I अनु की सास सन्तो देवी हर रोज मन्दिरों में
मन्नतें माँगती ,“ मेरी बहु की गोद हरी हो गई तो पूरे 2100
रुपये मन्दिर में
चढ़ाऊँगी I” अनु अपने सपनों को साकार होने की खुशी में फूली
नहीं समा रही थी l तभी ,“अरे अनु ,क्या सोच रही है ? चल
जल्दी से तैयार हो l सारे मेहमान आने वाले हैं I भई गोद भराई की रस्म अदा करनी हैIसारे गाँव में जश्न मनाया जाएगा अब l ” सन्तो ने इतरा कर कहा I गोद भराई की रस्म अदा की गई l सन्तो ने रीति-रिवाजों
के मुताबिक सारी रस्में पूरी की I अनु मन -ही -मन सोच रही थी ,चलो देर -सवेर आखिर भगवान ने
उसकी फरियाद सुन ही ली I अगर माँ नहीं बनती तो पता नहीं उसे क्या-क्या कष्ट सहने पड़ते क्योंकि नारी-जीवन की
पूर्णता तो उसके मातृत्व सुख में ही निहित होती है I ऐसा सोचकर अनु ने
भगवान का शुक्रिया अदा किया और राहत की साँस ली I अब
सन्तो सारा दिन अनु की खूब सेवा करती I उसे कभी जूस व कभी
फल खिलाती ताकि आने वाला बच्चा सुंदर और स्वस्थ पैदा हो I सन्तो अनु को घर का कोई काम न करने देती l
अनु का पति विपिन भी बाप बनने की
खबर सुनकर मन ही मन योजनाएं बनाने लगा l उसने सोचा कि वह
अपने बेटे का नाम चिराग रखेगा l आखिर वह शुभ घड़ी भी
आ गई जब नौ महीने पूरे होने पर प्रसव पीड़ा के कारण अनु को अस्पताल भर्ती करवाया
गया l घर में तैयारियां पहले से ही शुरू कर दी गई .सन्तो दरवाज़े पर नजरबटटू बाँध कर अपने पोते का
बेसब्री से इंतज़ार करने लगी l इतने में, “ बधाई हो विपिन जी l माँ और
बच्चा दोनों स्वस्थ हैं l”
ड़ाक्टर ने विपिन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा l
“ जी शुक्रिया l बच्चा कैसा है ? मेरा मतलब मेरा बेटा कैसा है ? जरूर मेरे पर गया होगा l ” विपिन ने सीना तान कर कहा l
“ बेटा ”
“ जी मेरा बेटा ”
“ विपिन जी,आपको बेटा नहीं,बल्कि एक प्यारी –सी बेटी
हुई है l”
“ क्या ? जैसे विपिन के गले में ही उसकी आवाज किसी ने खींच
ली हो l बेटी होने की खबर सुनकर विपिन वहीं सिर पर हाथ
रखकर बैठ गया l विपिन सोच रहा था कि माँ तो घर पर अपने पोते का
इंतज़ार कर रही है l जब सारी बिरादरी को पता चलेगा कि मेरी यहाँ बेटी पैदा हुई है तो..........l”
उधर जब अनु को होश
आया तो उसने भी नर्स से कहा, “ देखूँ तो जरा हमारा
बेटा कैसा दिखता है ? ”
इतने में अनु ,अनु कहता हुआ विपिन कमरे की चौखट पर आ खड़ा हुआ, “ अनु हमें बेटा नहीं ,बेटी हुई है l ” विपिन के माथे पर सिलवटें पड़ने लगीं l
“ ओह ! विपिन ये कैसे हो
गया ? नहीं ....नहीं ,ऐसा नहीं हो सकता विपिन l” अनु फूट-फूटकर रोने लगी l
अनु की ऐसी नाजुक हालत को देखकर
ड़ाक्टर ने उसे घर जाकर आराम करने की सलाह दी और कहा, “आप एक
सप्ताह के बाद अपनी बच्ची को साथ लेकर दुबारा चैकअप के लिए आना l मुझे आप दोनों से कोई जरूरी बात करनी है l ”अस्पताल से छुट्टी
मिलते ही अनु और विपिन बच्ची को लेकर घर को रवाना हुए l घर के दरवाजे पर खुश होती माँ को हाथ में आरती की
थाली लिए देख विपिन के चेहरे पर मायूसी छा गई l गाड़ी का दरवाज़ा खोल
अनु धीरे-धीरे लड़खड़ाते हुए बच्ची को आँचल में छिपाते हुए
घर के अंदर घुसने ही वाली थी कि तभी संतो ने चिल्लाकर कहा ,“ अरे ठहर,कहाँ सीधे अन्दर चले
जा रही है l मुझे आरती तो उतारने दे l अभी तो मुझे बहुत-सी रस्में करनी हैं l मैं कब से अपने पोते का बेसब्री से इंतजार कर रही
हूँ l ” “माँ रहने दो अब ये रस्में.... आपको पोता नहीं पोती हुई है l चलो ,सभी अन्दर चलो l” विपिन ने माँ से नजरें बचाते धीरे से कहा l
“ क्या ? हाय री मेरी किस्मत ! क्या यही दिन दिखाने को मुझे जिंदा रखा था
भगवान l ” सन्तो
की ऐसी बात सुनकर अनु
बच्चे को बरामदे में रखे पालने में ड़ालकर रोती-बिलखती अपने कमरे में चली गई l
सन्तो विपिन को
समझाने लगी , “अरे विपिन ,अब सारे गाँव में ये
खबर आग की तरह फैल जाएगी कि भगवान ने दस साल के बाद औलाद का सुख दिया तो वह भी, बेटा नहीं बेटी
l मैं तो किसी को मुँह न दिखा पाऊँगी l आखिर बेटे से ही घर का वंश आगे बढ़ता है l पूर्वज भी नाखुश होंगे इस खबर से , मैं न कहती थी कि पहले ही जाँच करवा लो l अगर पहले ही पता लग जाता कि बेटी है तो आज ये
मुसीबत थोड़े न घर आती l मैं तो गाँव में यह बात कतई न बताऊँगी l गाँव की सारी औरतें मुझे तानें मारेंगीं l जब राधा के घर पोती हुई थी तो गाँव की सारी औरतों
ने उसे कुलछनी आई ,कुलछनी आई कह-कहकर पागल कर दिया
था और अब मुझे भी.........न बाबा न l इस मुसीबत से तो
छुटकारा पाना ही पड़ेगा l
” अपनी बात को पूराकर सन्तो फर्श पर बैठ गई l सारे घर में मातम – सा छा
गया l
अनु सन्तो की सारी बात सुन रही
थी l वह अपनी सास को नाराज नहीं करना चाहती थी क्योंकि
वह भी चाहती थी कि वह घर में रानी बनकर रहे l अनु सोच रही थी कि
बेटी पैदा होने से पहले जब वह निसंतान थी तो उसकी सास उसे कितना प्यार करती थी और
पूरे घर में उसका बोलबाला था लेकिन अब बेटी होने की वजह से उसे सास के तानें सुनने
पड़ेंगे और सास को गाँव वालों के l आखिर सास ठीक ही कह
रही है कि मुसीबत आ गई है घर में l सन्तो की तरह अनु के
मन में भी बच्ची के लिए कड़वाहट और नफरत पैदा होने लगी l उधर सन्तो ने सारे घर में अन्धेरा कर दिया ताकि
गाँव वाले कहीं बधाई देने घर न आ जाएँ l सन्तो अनु और विपिन
के कमरे में गई और कहने लगी , “ देखों बच्चों ,हमें अपनी कुल-मर्यादा
की इज्जत तो रखनी ही पड़ेगी l उसके लिए चाहे हमें
कुछ भी क्यों न करना पड़े l
इसलिए मैंने एक तरकीब सोची है जिससे हमें मुसीबत
से छुटकारा भी मिल जाएगा और गाँव में हमारी इज्जत भी बनी रहेगी l ”
“ माँ क्या सोचा है तुमने ?” कह विपिन माँ की ओर उत्सुकता से देखने लगा l
“ इस गाँव से दूर 25 किलोमीटर
की दूरी पर एक शहर शुरू होता है l वहाँ हमें कोई नहीं
जानता l हम वहाँ जाकर इस मुसीबत को कहीँ भी छोड़ आते हैं
और जब गाँव वाले पूछेंगें तो हम कह देंगें कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था और वह भी
लड़का l आखिर अपनी इज्जत तो रह जाएगी न, चलो मरा ही सही ,था तो
लड़का न l तुम
देखना अगले साल मेरे घर पोता ही पैदा होगा l इस घर का वारिस आएगा
जरूर l ”
“ हाँ ,माँ तुम ठीक कहती
हो l ” कह विपिन भी अपनी
माँ की योजना को साकार रूप देने के लिए सहमत हो गया l
फिर से बेटा पैदा होने की आस में
जैसे तीनों के मन में शैतान ने ड़ेरा ड़ाल लिया था l तीनोँ
मासूम बच्ची की जान के दुश्मन बन उसे सफेद कपड़े में लपेट रात को ही गाड़ी में सवार
हो शहर की तरफ रवाना हो गए l गाँव खत्म होते ही
शहर की चकाचौंध शुरू हो गई l
“ माँ ऐसे बच्ची को कहाँ छोड़ेंगें ” अनु ने दबे स्वर में कहा l
“ अरे कहीं भी ,तू चल तो सही ” कह सास इधर-उधर देखने लगी l
“ माँ ऐसे तो कोई देख लेगा l ”
“ विपिन तू ड़रता क्यों है ? ला, अब तू इस मुसीबत को
मेरे हवाले कर l ” सन्तो की आखें खून –सी लाल हो गई l सन्तो
बच्ची को उठा गाड़ी से नीचे उतर गई l 10-15 कदम दूर
सन्तो को एक कूड़ेदान नजर आया जिसके पास पाँच-छह कुत्तों की टोली
भोजन की इंतजार में भूखी आँखों से इधर-उधर घूर रही थी l
आखिरकार अपनी मुसीबत से छुटकारा पाकर
तीनों वापिस गाँव की तरफ खुशी-खुशी लौट आए l एक सप्ताह के बाद अनु और विपिन ड़ाक्टर से मिलने
गए l
“नमस्कार ड़ाक्टर साहब ” विपिन के चेहरे पर एक अलग तरह की खुशी झलक रही थी
l
“ नमस्कार , आइए आपकी बच्ची कहाँ
है ? ” ड़ाक्टर ने पूछा l
“ जी दरअसल वो गर्मी बहुत है न, तो माँ ने उसे साथ नहीं भेजा, अपने पास ही रख लिया l अच्छा आपने आज किसी जरूरी बात के लिए हमें बुलाया
था l ”
“ हाँ
दरअसल बात यह है ,जब आपकी बेटी पैदा हुई थी तो उस समय हमने आपको यह
नहीं बताया कि अनु के गर्भाशय में इंफेक्शन इतना अधिक बढ़ चुका था कि अनु की जान को
खतरा है l इसलिए हमनें अनु का गर्भाशय निकाल कर उसकी जान
बचाना ही ठीक समझा l
ड़ाक्टर की बात सुनते
ही अनु जोर से चिल्लाई ,“
नहीं........नहीं l क्या मैं,अब कभी माँ नहीं....ओह ! नहीं… ” रोती-बड़बड़ाती अनु बाहर की तरफ भागने लगी l
“ अनु-अनु रुको तो सही l ” विपिन भी अनु के पीछे-पीछे बाहर आ गया l
“ ये हमनें क्या कर दिया विपिन l तुम्हारी माँ के कहने पर मैंने अपनी बच्ची को उस
कूड़ेदान में बिना सोचे समझे......और अब मैं कभी भी
माँ नहीं बन पाऊँगी l ये कैसा घिनौना अपराध हो गया मुझसे l ”
“ चलो विपिन , जल्दी चलो , शहर की ओर अभी l मुझे
मेरी बच्ची वापिस चाहिए l
अब मुझे गाँव वालों की कोई परवाह नहीं और न ही
तुम्हारी माँ की l चाहे मेरी कोख से बेटी ही पैदा हुई थी, पर था तो मेरा अपना खून l पर मैं सारी उम्र नि:संतान होने का कलंक नहीं सह सकती l न जाने मेरी बच्ची का क्या हुआ होगा ? ओह ! वहाँ उस समय कुत्ते
भी.......सोचकर अनु काँपने लगी लेकिन हिम्मत करके अनु बोली, “ हो सकता है कि वहाँ किसी ने उसकी रोने की आवाज
सुनकर उसे उठा लिया हो l हे ! भगवान ऐसा ही हो l
“ तुम ठीक कहती हो अनु ” विपिन को भी अपनी गलती का एहसास होने लगा l
“ गाड़ी तेज चलाओ और तेज विपिन l हे परमेश्वर ! मेरी
बच्ची की रक्षा करना l उसने किसी का क्या बिगाड़ा था जो मैंने उसे इतनी
बड़ी सजा दे दी l ” अनु पागलों की तरह अकेले ही बड़बड़ाती जा रही थी l
गाड़ी तेज रफ़्तार में
हवा से बातें कर रही थी l
अनु के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे l “रोको गाड़ी,रोको विपिन l यह वही जगह है न जहाँ हमने बच्ची को छोड़ा था , वो रहा कूड़ेदान l ”
अनु गिरती-सँभलती कूड़ेदान के पास जा पहुँची और पीछे-पीछे
विपिन भी l “ ओह ! यहाँ तो कोई नजर
ही नहीं आ रहा l अब मैं किससे पूछूँ ? न जाने मेरी बेटी को कौन यहाँ से उठा कर ले गया ? अनु के पैर लड़खड़ाने लगे और उसकी आत्मा उसे बार-बार धिक्कारने लगी कि उसने लालच और स्वार्थवंश
होकर अपने घर आई लक्ष्मी जैसी बेटी को दुत्कार कर कूड़ेदान में फ़ैक दिया l शायद यह उसका ही श्राप है कि वह अब कभी माँ नहीं....." और अनु वही जमीन पर गिरकर बेहोश हो गईl
“ बेरहम , तुम ठीक कह रहे हो विभु,किसी माँ ने इसे कूड़ेदान में सफेद कपड़े में
लपेटकर इसलिए फ़ैक दिया क्योंकि ये लड़की है l विभु तुम अपनी बहन
परी की आकस्मिक मृत्यु के बाद हमेशा कहते
थे न, “ मैं अनाथ तो पहले ही था और अब मैं परी के जाने के
बाद मैं स्वयं को नितांत अकेला महसूस करता हूँ ,किसके
साथ अपना सुख-दुख बाँटू , और तुम हमेशा उसको
याद करके रोते रहते थे . तो लो, आज ईश्वर ने संयोग-वश
तुम्हें ये नन्ही कली परी के रूप में दोबारा से दे दी है l ” अजीत ने मुस्कुराते
हुए कहा l अपने दोस्त की बात सुन विभु की आँखों में आँसू
झलक आए और वह गुनगुनाने लगा, “ मेरे घर आई एक नन्ही
परी l ”
डॉ प्रीत अरोड़ा
संयोग के बहाने स्त्री विमर्श
( समीक्षा )
"परिकल्पना ब्लागोत्सव" डा० प्रीत
अरोड़ा की कहानी "संयोग" को पढ़ने का संयोग बन गया. पूरी कहानी कन्या
शिशु के कूड़ेदान में छोड़कर माता-पिता और दादी के लौट आने की है. बाद में अजीत नाम
के एक व्यक्ति का उसे पाकर निहाल होने का दृश्य है. ख़ास बात यह, जब एक सप्ताह बाद डाक्टर माता-पिता को
बताता है कि गर्भाशय में इन्फेक्शन होने क कारण उसे काट कर निकालना पडा और अब वह
कभी माँ नहीं बन पायेगी, तो उनके होश उड़ जाते है. माँ पागल की
तरह पति के साथ कूड़ेदान तक कार से पहुँच कर बेटी खोजती है, पर वह तो किसी के घर और दिल की रोशनी
हो चुकी होती है.
पंजाब
मूल की रहने वाली प्रीत ने अपने गिर्द नितप्रति होती घटनाओं का बेहतर ढंग से स्वर
प्रदान किया है. इन स्वरों से छिटक कर कई सवाल हमारे मस्तिष्क को खटखटाने लगते
हैं. एक: यह कहानी किसी कंगाल घर की नहीं है, जहाँ
बेटी के विवाह के खर्चे से डर कर मजबूरी में कूड़ेदान में फेंका गया हो. दो: बेटी के त्याग का कारण यह भी
नहीं है कि उसके पहले कई बेटियां हो चुकी हैं और यह एक नयी गृह के रूप में आ पडी
हो. तीन: ऐसा भी नहीं है कि बेटी के प्रति माँ को गहरा लगाव हो और पिता-दादी जबरन
छीनकर फेंक आये हों. बल्कि बेटी से नफ़रत में माँ एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती
है. चार: बेटी को फिर से खोजने की जरूरत इसलिए नहीं पडी कि किसी संत-महात्मा ने
अचानक कोई इश्वर का सन्देश पंहुचा दिया हो, बल्कि
इसलिए कि डाक्टर ने बता दिया कि उसका गर्भाशय काट कर निकाल दिया गया है और अब वह
माँ नहीं बन सकती. वह बेटी को खोजने इसलिए दौड़ पड़ती है कि कम से कम उसे एक वारिश
तो मिल जाएगा. बेटी ही सही. पांच: यह भी नहीं है कि अब उस कन्या को किसी मनुष्य का
प्यार ही हासिल न होगा. बल्कि वह तो एक ऐसी जगह पहुँच जाती है, जहां वह किसी परी से कम नहीं महसूस
होती.
कहानी
की मुख्य धारा में दो महिलायें और एक पुरुष षड्यंत्रकारी भूमिका निभाते हैं. इसमें
भी नफ़रत की आग पुरुष चरित्र से ज्यादा दोनों महिलाओं में है.
इस
कहानी के आलोक में अब कुछ ख़ास बिंदु गौरतलब हैं. स्त्री-पुरुष लिंगानुपात अपने
देश में दुरुस्त होता नहीं प्रतीत होता. २१वी सदी के १२ साल गुजरने के बाद भी
कन्या शिशु के प्रति घ्रिनास्पद सोच बनी
हुई है. वह भी महिलाओं में. विश्व स्तर पर नारी आन्दोलन कन्या शिशु और भ्रूण हत्या
या उत्पीडन के खिलाफ आन्दोलन चला रहा है. लेकिन एक महिला लेखक जो युवा
साहित्यकारों का पुरजोर प्रतिनिधित्व कर रही है, बड़ी बेबाकी से इस आन्दोलन पर सवाल खडा कर देती है. प्रीत ने सगी माँ
और सगी दादी के कन्या के प्रति उपजे नफ़रत को सामने धर दिया. संतो बेटे और अनु पति
बिधु द्वारा बेटी होने की सूचना पर घबरा जाती हैं. बची को घर के भीतर नहीं ले जाया
जाता, बल्कि बरामदे में पड़े पालने में एक तरह
से फेंक ही दिया जाता है. घर की रोशनी बुझा दी जाती है, कि कहीं गाँव के लोगों को इस बारे में
जानकारी न हो जाए. यह इंतजाम भी साबित करता है कि पूरा गाँव कन्या विरोधी है. सभी
अवगत हैं कि प्रसवोपरांत मंगल गीत और सोहर-बधाई गाने कौन आता है. सिर्फ महिलायें.
और इन्ही महिलाओं से अनु और संतो को डर है. यही महिलायें अपने घरों को लौटने के
बाद पतियों को बेटी होने की सूचना भी देंगी. सूचना के बाद आग फैलाने का काम भी तो
तब वही करेंगी! पूरी कहानी में पुरुष चरित्र विधु केवल महिलाओं की सोच और उनके
द्वारा सृजित माहौल का तमाशबीन और अनुयाई सा प्रतीत होता है. अब सवाल खडा होता है
कि क्या महिला समाज ही सबसे अधिक कन्या जन्म और अस्तित्व का दुश्मन है! नारी
आन्दोलन की प्रतिनिधियों का तर्क हो सकता है कि बेशक कन्या को ठिकाने लगाने का
उपक्रम महिलाओं द्वारा तैयार किया गया हो, पर
यह है लम्बे समय की पुरुष सत्तात्मक सृष्टि का प्रेरित परिणाम. उनका यह भी तर्क हो
सकता है कि ठीक है संतो और अनु ने उस कन्या को ठिकाने लगाने की योजना बनाई तो विधु
ने क्या कर दिया. उसने विरोध क्यों नहीं किया.
इस
सवाल के उत्तर के लिए ऐतिहासिक सन्दर्भों और मनोविज्ञान के गह्वर में प्रवेश करना
होगा. भारतीय पुरुष महिलाओं के प्रति कठोर तो होते ही हैं, पर संजीदा भी होते हैं. वे घर में
पत्नी-माँ से चाहे जितना भी लड़ लें, पर
अंततः वे आत्मसमर्पण के लिए विवश होते हैं. "कान्ता सममितयोपदेश्युजे"
पुरुष समाज के लिए आदिकाल से ही प्रभावकारी रहा है. पुरुष के लिए पत्नी या प्रेयसी
की इच्छा -आकांक्षा बहुत मायने रखती है. उनके लिए इसका अतिक्रमण कर पाना मुश्किल
होता है. विधु का सम्पूर्ण अनुशरण इसी ओर संकेत करता है. गाँव से २५ किलोमीटर दूर
शहर के करीब पड़े हुए कूड़े और मंडरा रहे कुत्तों के बीच क्रोध से आँखें लाल कर
बच्ची को छोड़ने उतरने वाली भी संतो ही है, विधु
नहीं. इतना ही नहीं, दूसरी जगह बच्ची को पाकर निहाल होने
वाला कोई और नहीं बल्कि एक पुरुष ही है. लेकिन वह शहर का है.
तो
क्या ग्रामीण समाज की महिलाओं में अपनी जमात के प्रति ज्यादा द्वेष भाव है? बनिस्बत शहर के? यदि ऐसा है तो नारी आन्दोलन के विमर्श
में गाँव और शहर की संवेदना को विभाजित कर मूल्यांकन करना होगा. मै खुद एक पिछड़े
गाँव में पैदा हुआ हूँ. संपर्क आज भी बना है. मुझे तो ऐसा ही प्रतीत होता है, जैसा कि प्रीत ने संयोग की महिलाओं को
प्रस्तुत किया है. यहाँ एक बात और उल्लेखनीय है कि संतो, अनु और विधु कहीं से अनपढ़ नहीं प्रतीत
होते. बल्कि वे एक मध्यवर्गीय औसत शिक्षा अर्थात इंटर-स्नातक के तो शिक्षित जरूर
मालूम होते हैं. यानी वे पूर्णतः अशिक्षित भी नहीं हैं. इसलिए उन्हें अनपढ़ की
श्रेणी में भी नहीं डाला जा सकता. वे अत्यंत पिछड़े गाँव के भी नहीं हैं, क्योंकि उनके पास पक्का मकान और गाडी
भी है. घर में बिजली भी है. साथ ही शहर मात्र २५ किलोमीटर दूर है.
प्रीत
ने जिस सहज भाषा में पंजाब प्रांत के विकासशील गाँवों के मध्यवर्गीय परिवारों की
सोच को करीने से प्रकट किया है, वह
उस हर घर के भीतर की मानसिकता का प्रमाण है, जो
भले ही अलग प्रांत के हों,
पर कन्या के प्रति अमानवीय दृष्टिकोण
रखते हैं. लेखिका ने बिना पक्षपात के स्त्री-पुरुष मनःस्थितियों को सामने रख दिया
है. कहानी सवाल खड़े करती है कि २१वी सदी में भी विराशत और वारिश के लिए कन्या एक
अंतिम विकल्प है, प्रथम नहीं. प्रथम पायदान पर तो पुत्र
ही रहता है. चूंकि अनु अब माँ नहीं बन सकती और गाँव वाले उसे बाँझ कहेंगे और उसका
कोई वारिश नहीं होगा, इसलिए वह बच्ची को ढूढने को दौड़ पड़ती
है. उसके लिए दिल के तुकडे का कोई महत्व नहीं है, बल्कि अपने अस्तित्व को बचाना अहम् है. प्रीत की कहानी २१वी सदी में
दूसरे दशक की ग्रामीण स्त्रीजनित मानसिकता का दस्तावेजी नमूना है.
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लेखक
दैनिक जागरण जमशेदपुर में वरिष्ठ उप सम्पादक रह चुके हैं. दो काव्य संग्रह और एक
उपन्यास प्रकाशित. समसामयिक पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा, लेख, कविता और कहानियाँ प्रकाशित
हो चुकी है.
डा०
रमा शंकर शुक्ल
बहुत सुन्दर कहानी है प्रीत. शानदार समीक्षा भी.
ReplyDeletebahut acchi kahani hai
ReplyDeletemubarkh hai
Dr Preet ji
अपने समाज में फैली कन्या भूर्ण हत्या को लेकर लिखी गई सटीक कहानी ....
ReplyDeleteअब वक्त है कि समाज की सोच को बदलना होगा
... बेटियों के साथ जो अन्याय हो रहा है...उसे इस सशक्त कहानी द्वारा आपने दर्शाया है!...समीक्षा भी बहुत अच्छी है!
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