Tuesday 23 April 2013

संभालना होगा हमें अपनी विरासत को

                          
भारत एक मात्र ऐसा देश है जहाँ पर संस्कृति ,सभ्यता और जाति-धर्म के लोग रहते हैं जिनकी भाषा ,खान पान ,रीति रिवाज इत्यादि अलग अलग हैं .इसलिए हमारे पूर्वजों द्वारा विरासत के रूप में मिली हुई संस्कृति व सभ्यता उन्नत व समृद्ध है .जहाँ आज विश्व के विकासशील देशों की अग्रिम पंक्ति में भारत का नाम लिया जाता है .वहां आधुनिकता की दौड़ में हम पश्चिमी देशों की संस्कृति व सभ्यता को अपनाने के कारण अपनी विरासत में मिली भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को नकारते जा रहे हैं .परिणामस्वरूप समाज और देश को आए दिन नई नई समस्याओं और घटनाओं से जूझना पड़ रहा है .भारतीय इतिहास गवाह है कि हमारे देश के समाज सुधारकों और वीरों ने मातृभूमि प्रेम की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हुए प्रेम ,दया ,सदभावना इत्यादि का संदेश अन्य देशों में भी पहुँचाया.परन्तु दुख की बात है कि आज हम अपनी परम्पराओं व मान्यताओं को सर्वथा भूलाकर पाश्चात्य संस्कृति व सभ्यता की ओर खींचे चले जा रहे हैं .इन सभी परिस्थितियों के पीछे हम और हमारी मानसिकता जिम्मेदार है .मानसिकता के कारण समाज में दुराचार व व्यभिचार अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं . हमें आए दिन अखबारों से लेकर टी .वी .चैनलों तक हत्या,छेड़छाड़ ,चोरी ,डकैती ,बलात्कार व किडनैपिंग इत्यादि जैसी घिनौनी वारदातें पढ़ने ,सुनने व देखने को मिलती है .आज व्यक्ति घर में और बाहर किसी भी कार्यक्षेत्र में स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करता .
                          पैसा ,शोहरत ,मान सम्मान के लिए व्यक्ति अन्धाधुन्ध अपनी ही जड़ों को काटे जा रहा है .सच तो यह है कि हमें किसी सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में वीर है देश जवानों का या ऐ मेरे वतन के लोगों ....इत्यादि देशभक्ति की धुन सुनने के लिए वहाँ युवा-वर्ग की बात तो छोड़ो ,प्रौढ़ और वृद्धों की उपस्थिति भी न के बराबर दिखती है जबकि इसके विपरीत हमें क्लबों ,पार्टियों में आज के बेसिर पैर आइटम गानों की धुन पर युवाओं के साथ साथ अधेड उम्र के लोगों की थिरकती हुई एक अच्छी खासी भीड़ नज़र आ जाएगी .आज न तो हम संस्कारों का पालन स्वयं कर रहे हैं और न ही अपनी नई पौध को अच्छे संस्कारों से सीचना चाहते हैं .चूंकि हमारा धर्म व ईमान सिर्फ और सिर्फ अंधाधुंध पैसा कमाकर ऐशोआराम भरी जिन्दगी जीना है .आज घिनौनी वारदातों द्वारा हम मानवता को लहूलुहान करके अपनी विरासत की आहुति दे रहे हैं .मैं मानती हूँ परिवर्तन प्रत्येक युग की माँग है पर अगर परिवर्तन ही हमारी जडोँ को खोखला करके तहस नहस करने लगे तो वैसा परिवर्तन भी किसी काम का नहीं .पुरातनता में नवीनता का संगम उस हद तक ठीक रहता है जहाँ तक वह हमारी विरासत में मिली सामाजिक व साँस्कृतिक धरोहर को सिरे से खारिज न करे .आज सबसे आवश्यकता है कि हम अपनी भाषा ,रीति-रिवाजों  ,खान पान ,त्यौहारों आदि की गारिमा को बनाए रखें .ये परिवार और समाज का पहला कर्तव्य बनता है कि हम अपने देश के सुखद भविष्य के लिए सभ्य व सुसंस्कृत बनाने वाली नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को सौंजन्य रखें .तभी एक समृद्ध और सुखी समाज की परिकल्पना होगी और हमारी विरासत में मिली संस्कृति व सभ्यता जीवित रह सकेगी .
डॉ प्रीत अरोड़ा

3 comments:

  1. बात बिलकुल सही कही आपने . इसको समझना ही होगा .

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  2. sahi kaha aapane purvajo se virasat mai mili sanskruti ko aaj ki pidhi tahas nahas karne par lagi hui hai. is baat ko hame gambhirata se samajhana hoga

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